खुद से इंतकाम लिया है मैंने !
चाह कर भी तुझे भुला न सके
लाख की खुद से कोशिशें मैंने !
अब तलक हूँ मैं गरिफ्त-ए-इश्क
तुझको आज़ाद किया है मैंने !
ज़िन्दगी मेरी हुई यूँ आबाद
जब से तुझको रिहा किया मैंने !
तू मेरे दिल में अब भी रहता है
की तेरे नाम जिंदगी मैंने !
यूँ तो बदनाम हूँ... तेरी खातिर
फिर भी उसका मज़ा लिया मैंने !
नाम ना सही बदनाम तो हूँ.......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पूनम जी...
बढ़िया गज़ल..
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
bahut achchi lagi......
जवाब देंहटाएंगहन दर्द को समेटे ...खूबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंkismat waalon ko mazaa miltaa hee hai ,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन,खूबसूरत गजल पूनम जी...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसादर बधाईयां..
Bahut khoob
जवाब देंहटाएंaap sabhi ka shukriya.....
जवाब देंहटाएंपूनम जी आपसे contact किस तरह हो??
जवाब देंहटाएंबेहद भाव पूर्ण गजल ..शुभ कामनाएं !!!
जवाब देंहटाएंbahut sunder gazal...........
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar aur shandar post.
जवाब देंहटाएंखुद से इंतकाम, बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंbahut hi umda
जवाब देंहटाएंaap sabhi ka shukriya......
जवाब देंहटाएंबही खूब ... सच है किसी की यादों से छुटकारा पाना ही असल आजादी है ...
जवाब देंहटाएं:)...खुद से इंतकाम लिया है मैंने !
जवाब देंहटाएं