नया सा नूर जैसे छा रहा है...
अँधेरा दूर होता जा रहा है...!
कोई बैठ़ा पस-ए-चिलमन है गोया,
हमारे दिल को जो धड़का रहा है...!
गुजारी हिज़्र में इक उम्र हमने...
करीब अब वक़्त हमको ला रहा है..!
बहुत शिद्दत से चाहा है उन्हें पर...
न जाने दिल क्यूँ धोखा खा रहा है...!
हमारी बज़्म हो उनको मुबारक..
वो आये...उठ के कोई जा रहा है...!
नहीं हम प्यार करते हैं किसी से...
तो 'पूनम' दिल क्यूँ उन पे आ रहा है..!
***पूनम***
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-01-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1882 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
धन्यवाद दिलबाग जी मुझे चर्चामंच पर शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं" सरल और भावपूर्ण।"
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