तुम्हारे पास शब्द बहुत हैं...
और मेरे पास भाव...!
तुम्हारे शब्दों...
और मेरे भावों में..
बस आपसी समझदारी का अभाव है...!
तुम शब्दों में जो समझाना चाहते हो...
मेरे भाव उसे समझने से इंकार करते हैं...!
और मेरे भावों को समझने से
तुम सरासर मुकर जाते हो...!
इस जद्दोज़हद में..
अक्सर शब्द अपने मायने खो देते हैं....!
और भाव.....
भाव तो वैसे ही पिछड़े रहते हैं...
क्यूँ कि उनके पास अपने शब्द नहीं है.....!!
ye to main-main ki takrar jaisee lag rahi :)
जवाब देंहटाएंअजीब उलझन है
जवाब देंहटाएंमैं , मैं मिल हम बने तो
कविता पूर्ण हो क्यूँ कि
शब्द और भाव मिल कर ही
तो उम्दा रचना रचेगी न ....
वाह, सुंदर कविता, पर मुझे लगता है भाव पिछड़े हुए से लगते हों पर पिछड़े नहीं हैं..नहीं हैं वे शब्दों के मुहताज..वे तो कब चुपके से दिल को छू जाते हैं पता ही नहीं चलता..हाँ, कोई पत्थर दिल हो तो..
जवाब देंहटाएंकौन भरे यह रिक्त घटों को।
जवाब देंहटाएंभाव बिन शब्द इक शरीर है बस
जवाब देंहटाएंकुछ न कर पाएगा रहा बेबस
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