अक्सर होता ऐसा ही है...
चाहतें किसी की होती हैं...
निशाना पे भी कोई होता है
लक्ष्य साधा जाता है उसी पे
लेकिन...
बूमरैंग की तरह निशाने को घुमा कर
लगाया कहीं और जाता है.....!!
लग गया तो जश्न....
न लगा कर्म-धर्म,संस्कार का उपदेश....!
ये इंसान भी न....!!
हर बात को अपनी तरह से
घुमा फिरा के बोलता है...!
ईश्वर करे भी तो क्या...?
अपनी ही बनायीं रचना से
हारा हुआ महसूस करता होगा...
बुद्धि दे कर इंसान को
उसी बुद्धि के आगे खुद को
छोटा महसूस करता होगा...
क्यूँ कि इंसान इसका प्रयोग
अपने किये को
सही साबित करने में
ज्यादातर लगाता रहता है...!
अब ईश्वर कर भी क्या सकता है...
सिवाय आश्चर्य के...!!
खुदा भी आसमां से जब जमीं पर देखता होगा...
जवाब देंहटाएंइस कृतघ्न इंसान को क्यों बनाया सोचता होगा...
इश्वर की दुविधा को भली-भांति परिलक्षित करती रचना...
गहरी..
जवाब देंहटाएंगहन रचना....
जवाब देंहटाएंसस्नेह
अनु
बहुत ही गहरे भाव
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही शानदार ।
जवाब देंहटाएं्बहुत गहरी बात कह दी।
जवाब देंहटाएंगहन रचना ...!
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