दूर-दूर तक फैला
नीला विस्तृत आकाश...
किसी चित्रकार के
कैनवास की तरह
और उस पर..
यहाँ से वहां तक
कतारों में
फैला सफ़ेद बादल
रेगिस्तान की तरह
ऊंचा-नीचा,
न कोई पेड़-पौधे
न कोई पंछी, न इंसान
लेकिन फिर भी
कुछ दिखाई देता है
कुछ अनजाना सा अनबूझा सा...
पता नहीं क्या...???
यह किस कवि की कल्पना का चमत्कार है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत......बादलों में किसी की तलाश है.....वो जिसका अक्स हर किसी पर पड़ता है......वही मिलेगा हर जगह.....और कोई है ही नहीं उसके सिवा|
जवाब देंहटाएंbehad khoobsurat......
जवाब देंहटाएंmam bahut hi pyari rachna lagi.....
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
ये दृश्य सहज गोचर नहीं है पूनम जी ... ध्यान की सुरुआत होती है यहाँ से साधकों के लिए और जन्नत की शुरुआत होती है यहीं से प्रेमियों के लिए !
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