हम इंसान हैं,भावनाएं हैं हम में और संवेदनाएं भी...विषम परिस्थितियों में हम विचलित भी हो जाते हैं परन्तु आतंरिक सहजता और शान्ति हमें वापस हमारे स्वभाव में ले आती है,वरना सारा समय या तो हम अभाव में रहते हैं या प्रभाव में...! अभाव में जो हमारे पास नहीं है उसका रोना रोते रहते हैं या फिर किसी व्यक्ति,स्थान और वस्तु विशेष के प्रभाव में रहते हैं.. यह भी हमारे किसी अभाव को ही दिखाता है I इस प्रकार इनके प्रभाव में आ कर हम अपने उन अभावों की पूर्ति का एक सरल साधन प्राप्त कर लेते हैं..!और उस समय हमारा अपना निज का स्वभाव क्या है, हम आसानी से भूल जाते हैं.देखा गया है कि हमारे मन की स्थिति जैसी होती है, हमारे मन के भाव जैसे होते हैं,हमारे विचार जैसे चल रहे होते हैं...हमारा अपना तालमेल भी उसी भाव,उसी स्थिति और उसी तरह के विचार वाले लोगों के साथ ठीक बैठता है ! यदि हम खुश हैं तो किसी को दुःख में देख कर उसकी आलोचना करते हैं और यदि हम दुखी हैं तो हर खुश दिखाई देने वाला इंसान हमारी आलोचना के दायरे में बड़े आराम से फिट बैठ जाता है...!
'बू '----
बड़ा अजीब सा शब्द है लेकिन है बड़ा मजेदार ! सुनते ही नाक पर हाथ चला जाता है और मुंह भी अजीब सा बन जाता है ! यह शब्द न जाने क्यूँ मेरे ज़ेहन से निकल ही नहीं पा रहा है..हुआ यूँ कि अभी कुछ दिनों पहले मैंने एक 'सिंगल एक्ट प्ले' देखा जो ‘शहादत हसन मंटो’ साहेब की लिखी एक कहानी ‘बू’(गंध ) पर आधारित था.मैंने कहानी तो नहीं पढ़ी लेकिन नाटक में कहानी को शायद हू-ब-हू उतार दिया गया था (जैसा कि सूत्रधार ने उस कहानी को प्रस्तुत किया)..१९४० के दशक में लिखी ये कहानी काफी वि वादस्पद रही अपने कथानक और शब्दों की अश्लीलता को ले कर. उसी समय 'इस्मत चुगताई' की भी एक कहानी आयी लोगों के सा मने ‘लिहाफ’, जो समलैंगिक सम्बन्ध पर आधारित थी, सुनते हैं कि ये दोनों कहानियां अपने विषयवस्तु को लेकर लोगों में चर्चा का कारण बनी.और 'मंटो’ साहेब' और 'इस्मत आपा' इन दोनों पर ही लाहौर की अदालत में मुकदमा भी चलाया गया.....!!
जो भी हो,उस नाटक को मैं भूल नहीं पाई और उस न ही उस शब्द 'बू ' को, नतीज़न आज मैं इसी विषय पर कुछ लिखने पर मजबूर हो गई......!
कहानी का नायक रणजीत बारिश के एक दिन एक घाटन लड़की (शायद किसी घाटी से सम्बंधित स्थानीय शब्द है) को भीगते हुए देखता है और उसे बारिश से बचने के लिए अपने घर में बुला लेता है.(क्यूंकि उस समय वह अकेले था ) और फिर..............!
कहानी का नायक रणजीत बारिश के एक दिन एक घाटन लड़की (शायद किसी घाटी से सम्बंधित स्थानीय शब्द है) को भीगते हुए देखता है और उसे बारिश से बचने के लिए अपने घर में बुला लेता है.(क्यूंकि उस समय वह अकेले था ) और फिर..............!
यह कहानी उस लड़की के बदन से आती हुई 'बू' के इर्द-गिर्द चक्कर काटती है... ! शादीशुदा नायक रणजीत को,जिसका और भी लड़कियों के साथ शारीरिक सम्बन्ध रह चुका है, उस घाटन लड़की की बारिश से भीगे बदन की बू में जो मिला,वह उसे अपनी पत्नी के हिना के इत्र से तर शरीर में भी न मिला,न ही उसे उन mod सी लड़कियों में मिला जिनसे वो पहले सम्बन्ध बना चुका था.... !
(मैं उस कहानी की खोज में हूँ लेकिन अभी तक मिली नहीं है)
(मैं उस कहानी की खोज में हूँ लेकिन अभी तक मिली नहीं है)
फिलहाल बात आ जाती है 'बू' लफ्ज़ पर.....
उर्दू लफ्ज़ 'बू' जिसका हिंदी में अर्थ हुआ 'गंध'..अपने आप में एक पूरा लफ्ज़ है,एक पूर्ण शब्द जिसका जहाँ तक मैं समझती हूँ अर्थ हुआ 'महक' !! अब आप चाहें तो इसके आगे 'खुश' लगायें या 'बद'...तो लफ्ज़ बना 'खुशबू' और 'बदबू' ! इसी तरह 'गंध' शब्द के आगे भी उपसर्ग लग सकते हैं... 'सु' या 'दुर'...तो शब्द बन जाता है 'सुगंध' और 'दुर्गन्ध' !! है न मज़ेदार बात कि कितनी आसानी से एक उपसर्ग लगते ही मूल शब्द के मायने बदल जाते हैं...अब ये हमारे हाथ में है कि हम 'बू' के आगे क्या लगायें? भाई,अब जो हमारे पास होगा उसी का तो इस्तेमाल हम करते हैं...! तो आपके पास क्या है और आप क्या लगाना चाहेंगे..??
समाज के अलग-अलग परिवेश में, भिन्न-भिन्न जातियां-प्रजातियाँ और उन में रहने वाले किस्म-किस्म के लोग हैं.....अलग परिवेश,अलग रहन-सहन,हर तबके के लोग...अब इसमें से किसी को सड़े हुए फलों,गोबर और मछली की बू भी बुरी नहीं लगती और सारा दिन उन्हीं के बीच रहते है ,काम करते है और किसी का वहां जाते ही हाल बुरा हो जाता है,जी मितलाने लगता है.! अब इत्र को ही ले लीजिये...इसकी फैक्ट्री में का म करने वालों को इसमें से खुशबू नहीं आती, बस बू यानि कि महक आती है...और हम और आप जब अपने बदन पर इस्तेमाल करते हैं तो खु शबू आती है लेकिन अगर हमें ज्यादा देर फैक्ट्री में छोड़ दिया जाए तो शायद उतनी सुगंध से हमारा सिर ही फट जाए या हमें उल्टी ही आने लगे....!
ऐसे ही हर इंसान है...किसी से मिलकर हम खुश होते हैं और किसी से मिल कर दुखी या यूँ कह लें कि हमें अच्छा नहीं लगता..असल में वह इंसान आपको खुशी या दुःख नहीं देता है..उस समय हमारी मन:स्थिति कैसी है..सब उसी पर निर्भर करता है ! कई बार हम इतने खुश होते है कि अगर उस समय हमारा कोई मित्र कि सी दुखपूर्ण घटना का ज़िक्र करता है तो हम बड़े सहज और सरल ढंग से लेते हैं और उसे भी उस घटना से बाहर निकलने के उपाय बताते हैं या निकालने की कोशिश करते है...और इसी के विपरीत जब हमारा मन दुखी है और उस समय कोई हमें अच्छी बात भी बताता है तो हम नाराज़ हो जाते हैं या बड़ी बेरुखी से पेश आते हैं...!! अगर देखा जाए तो हम समभाव में रहते ही कम हैं और हर रिश्ते, हर व्यक्ति,हर परिस्थिति और हर स्थान के साथ हम अपनी मन:स्थिति के हिसाब से विशेषण लगाते जाते है...इसीलिए अक्सर हम देखते हैं कि बहुत सभ्य,सुसंस्कृत और प्रतिष्ठित से दिखाई देने वाले लोग भी तनावग्रस्त स्थिति में कभी-कभी ऐसी बदजुबानी और ऐसा व्यवहार कर जाते हैं कि विश्वास नहीं किया जा सकता है..! यह उनकी अपनी मन:स्थिति पर निर्भर करता है......!
अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार दुखी मन दुःख पकड़ता है और प्रसन्न मन प्रसन्नता ! कई बार ऊपर से खुश दिखाई देने वाला इंसान भी किसी दुखी व्यक्ति से मिल कर खुद को बड़ा सहज पाता है क्योंकि उसके अन्दर का दुःख उस समय उभर कर उसके सामने आ जाता है..कहीं न कहीं वह अपने दुःख या तकलीफ को सामने वाले के साथ share करके खुद की मनोदशा को justify कर पाता है...!
अब हम फिर से 'बू' ('गंध ) जैसे शब्द पर आ जाते हैं ! बहुत से लोग इसका मतलब गलत लगा बैठते हैं और इस शब्द का प्रयोग दुर्गन्ध या बदबू की तरह करते हैं...जैसे कई लोग किसी तरह की दुर्गन्ध आने पर नाक दबा कर और मुंह बना कर कहते हैं कि 'बू आ रही है !' कई लोगों को इसी तरह का आभास किसी परिस्थिति विशेष,किसी व्यक्ति विशेष, किसी घटना विशेष या किसी व्यक्ति/ रिश्ते विशेष में भी होता है...इस तरह लोग अपनी व्यक्तिगत मनोदशा या मनोभावना के अनुसार बू जैसे शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं क्योंकि जिस सन्दर्भ में इसका प्रयोग किया जाता है...इस शब्द का का अर्थ वह कदापि नहीं है !
'बू' ('गंध') एक शुद्ध (निर्विकार ) शब्द है जिसमें उपसर्ग...'बद' या 'खुश' ( 'दुर' या 'सु' ) लगाते ही इसका अर्थ बदल जाता है !अब समय है हमें स्वयं को परखने और तोलने का कि इस शब्द का प्रयोग करते समय हमारी मन:स्थिति क्या है ?.....और इसका प्रयोग हम कहाँ करते हैं....? ......किसी घटना/परिस्थिति के लिए ? किसी व्यक्ति/रिश्ते के लिए ? हो सकता है हमारी तरह ही दूसरे लोग भी अपनी-अपनी मन:स्थिति के अनुसार इस शब्द का प्रयोग हमारे लिए कर रहे हों....!!
अच्छा बिश्लेषण ...मन:स्थिति का रोल महत्त्वपूर्ण है ..
जवाब देंहटाएंजिसमें विशेषण...'बद' या 'खुश'('दुर' या 'सु') लगाते ही इसका अर्थ बदल जाता है ..
यहाँ मूल शब्द में जो शब्दांश लगाया जाता है उसे विशेषण नहीं उपसर्ग कहते हैं .. उपसर्ग लगा कर बनने वाला नया शब्द विशेषण का काम करता है ..
नसरुद्दीन शाह कृत हमने भी बंगलोर में देखा था, दोनों ने ही बहुत प्रभावित किया।
जवाब देंहटाएंboo ki itni achchi vyakhya.......bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंबू वैसा ही निर्विकार शब्द है जैसा निराकार जल।
जवाब देंहटाएंअच्छा बिश्लेषण
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंNice Analysis.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विश्लेषण!!! अच्छा लगा पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंजब इतनी सारी बातें हो ही गईं हैं इस के बाबत तो खुशबू का एक रंग मेरी नज़र से भी देखें!:
"दो अश्क उसके पॊंछ के क्या हासिल हुआ मुझे?
खुशबू नही गई है,अब तक मेरे रूमाल से"
आँसुओं की खुशबू को मह्सूस करे कोई!
वाह क्या पूर्णता दिया है आपने विषय को ....मज़ा आगया| सच ही है कि हमारे सापेक्ष और निरपेक्ष होते ही दुनिया बदलने लगती है ....बाहर कहीं कुछ नहीं है ..बहार कि दुनिया तो हमारा प्रतिबिम्ब भर है |
जवाब देंहटाएंइस नए पेज सेट-अप के बाद.....
जवाब देंहटाएंलिखा तो सही था लेकिन अभी व्याकरण काफी अशुद्धियाँ हैं...मैंने ठीक करने की कोशिश भी की लेकिन कई पंक्तियाँ गायब हो जा रही हैं....कृपया उन पर ध्यान न दें....!
कोशिश करूंगी की ठीक कर सकूँ....!!