क्या चाहा था तुमसे?
कुछ नहीं...!!
कुछ भी तो नहीं !!!
फिर भी तुमने
दे डाला
बहुत कुछ
बहुत कुछ
और मैं...
मूक बनी देखती रही.
मेरे दामन को
पूरा भर डाला
मगर अपनी मर्ज़ी से....!
अपनी इक्छानुसार ,
क्या नहीं डाला उसमें...!
और मैं धन्य होती चली गई
बिना मांगे जो मिल रहा था...!!
नहीं जानती थी कि-
तुम देते तो हो पर...
सब अपनी मर्ज़ी से !
देना तुम्हारी आदत है
और शौक भी.
फिर एक दिन...
तुमने ही
निकालना शुरू किया
उस दामन से
जिसे मैं समझती थी
तुमने भरा था
बड़े प्यार से !!
क्यूंकि...
बड़ी देर बाद पता चला मुझे
तुम जो भी देते आये हो
सब एहसान था तुम्हारा!
और फिर तुमने
जो दिया था
एहसान के तौर पर..
सब निकाल लिया
धीरे-धीरे !!
आज वह दामन खाली है
एहसास,प्यार,
एक-दूसरे के लिए सम्मान
सब ले लिया तुमने....
बस-
एक आत्मसम्मान बाकी है
उस दामन में
जो नितांत मेरा है!!
हारकर जीत जाने का सुख, जीतकर हारने का दुख, दो पहलू हैं, हर एक के जीवन में।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है..आत्मसम्मान बचा रहे तो सब कुछ हारकर भी हार नहीं होती...बहुत सटीक भावमयी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंaurat ki khali jholi ka marmik chitran kiya hai
जवाब देंहटाएंआदरणीया पूनम जी,
जवाब देंहटाएंआज आपने मेरे दिल की कह दी है.
बस
एक आत्म सम्मान बाकी है
उस दामन में
जो नितांत मेरा है.
बहुत खूब.
बहुत ही खूब.
bahut khub....aek atmsmman baki hae us daman mae , jo nitant mera hae...bahut badiyaa...
जवाब देंहटाएंबस-
जवाब देंहटाएंएक आत्मसम्मान बाकी है
उस दामन में
जो नितांत मेरा है!!
नारी कि स्थिति का सजीव चित्रण कर दिया है ...
बिलकुल आत्मसमान अपनी निजी वास्तु है!!!! इसको समृद्ध करना और खर्चना अपना निर्णय ही होना चाहिए....
जवाब देंहटाएंसंगीता स्वरुप जी से सहमत हूँ- " नारी की स्थिति का सजीव चित्रण कर दिया है ".
जवाब देंहटाएंसुदर भावाभिव्यक्ति !
पूनम जी,
जवाब देंहटाएंदिल से कहता हूँ ये पोस्ट बहुत पसंद आई है मुझे.......बहुत गहरी बात कह गयीं हैं आप....पर मैं तो इतना ही कहूँगा........अपना सुख और दुःख हमें दूसरों पर निर्भर नहीं करना चाहिए......सुख और दुःख तो हमसे आते हैं भीतर से.....बाकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी.....प्रशंसनीय |
आप सभी का शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंआप सभी के मेरे ब्लॉग पर आगमन के लिए मैं आभारी रहूंगी !!
जब हम किसी के साथ रहते हैं या ज़िन्दगी में कुछ साझा करते हैं भले ही किसी भी रिश्ते में,तो वहां बात होती है-प्यार की,भावनाओं के आदान-प्रादान की,एक-दूसरे के सम्मान और आत्मसम्मान के रक्षा की....!!ये बातें शायद ज्यादा समय बीत जाने के कारण धूमिल हो जाती हैं और इंसान अपने सम्मान को बचाने के लिए दूसरे के सम्मान को अनदेखा कर देता है....लेकिन एक आत्मसम्मान बचा रह जाता है,इन सब बातों से बिलकुल परे....बिलकुल अछूता......अनदेखा...!!
शायद आप मेरे विचारों से सहमत हों....शायद नहीं भी......!!
सभी के विचार एक से नहीं होते लेकिन उनका सम्मान करना हमारे हाथ में है...!
आप सभी की इतनी अच्छी प्रशंसा की मैं हक़दार बनी...!
आप सभी का शुक्रिया !
आप सभी के मेरे ब्लॉग पर आगमन के लिए मैं आभारी रहूंगी !!
बहुत सुंदर रचना ....आपकी टिप्पणी में कही बात से भी पूरी तरह सहमत हूँ.....
जवाब देंहटाएंMain v aapse puri tarah sahmat hun. ham jitna hote hain usase kam mahsus karte hain. aatmsmman kafi hai khud ko jitne k liye ...bahut achchhi lagi rachana...aabhar
जवाब देंहटाएंथोडा देरी हुए आप की कविता तक पहुचने में क्युकी व्यस्त था आजकल ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता..कॉपी करके प्रिंट लेना चाहता था इसका मगर हो नहीं पाया कृपया सहायता करें में इसे अपने कविताओं के COLLECTION में शामिल करना चाहता था..
अंतिम पंक्तिया बहुत हृदयस्पर्शी लगीं..
आशुतोष....
जवाब देंहटाएंमुझे ज्यादा जानकारी नहीं है इस बारे में !
अगर आपको कुछ जानकारी हो तो मुझे भी अवश्य बताये...
मेरी रचना पढ़ने के लिए धन्यवाद...!!
कल 03/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वाह पूनमजी...छू गयी आपकी रचना ....वैसे सच पूछो तो ऐसे में सबसे पहले 'आत्मा सम्मान ' ही छीन लिया जाता है .....
जवाब देंहटाएंआत्मसम्मान बना रहना चाहिये …………बेह्द सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर चिंतनात्मक रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
बस एक आत्मा सम्मान बाकी है ... वाह ... क्या बात है ... !!
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुति....
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