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रविवार, 26 दिसंबर 2010


चलना संभल-संभल के

इंसानियत की अब किसे दरकार है यहाँ !
दुश्मन भी दोस्त की तरह मिलते हैं अब यहाँ !!

कहते फिरे है खुद को हरिश्चंद्र जो जनाब !
देखा है हमने झूठ बोलते उन्हें यहाँ !!

कहते हैं लोग ज़िन्दगी में हैं मुसीबतें !
लाये मुसीबतें हैं जो ढोकर करके खुद यहाँ !!

देते उलाहना हैं जो हर बात पर हमें !
देखा है हमने रंग बदलते उन्हें यहाँ !!

हम जायेंगे जो दूर हमें मिल न पाओगे 
हम जैसा ढूँढ पाओगे न सरकार तुम यहाँ !!





2 टिप्‍पणियां:

  1. कहते हैं जो खुद को हरिश्चंद्र वो जनाब !
    देखा है हमने झूठ बोलते उन्हें यहाँ !!//
    सुंदर पोस्ट /
    नए साल की बधाई

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  2. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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