चलना संभल-संभल के
इंसानियत की अब किसे दरकार है यहाँ !
दुश्मन भी दोस्त की तरह मिलते हैं अब यहाँ !!
कहते फिरे है खुद को हरिश्चंद्र जो जनाब !
देखा है हमने झूठ बोलते उन्हें यहाँ !!
कहते हैं लोग ज़िन्दगी में हैं मुसीबतें !
लाये मुसीबतें हैं जो ढोकर करके खुद यहाँ !!
देते उलाहना हैं जो हर बात पर हमें !
देखा है हमने रंग बदलते उन्हें यहाँ !!
हम जायेंगे जो दूर हमें मिल न पाओगे
हम जैसा ढूँढ पाओगे न सरकार तुम यहाँ !!
कहते हैं जो खुद को हरिश्चंद्र वो जनाब !
जवाब देंहटाएंदेखा है हमने झूठ बोलते उन्हें यहाँ !!//
सुंदर पोस्ट /
नए साल की बधाई
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं