हर इक शिकवा, गिला, सारी रक़ाबत भूल जाती हूँ
मुहब्बत दिल में रखती हूँ मैं नफरत भूल जाती हूँ !
न छेड़ो इस तरह मुझको कि बह निकलें मेरे आँसू
दुखाये दिल कोई सारी नफासत भूल जाती हूँ !
किसी की नम हुई आँखें कोई नज़रें चुराता है
मिले गर प्यार से कोई हिमाकत भूल जाती हूँ !
नज़र से जब मिलें नज़रें नज़र झुक जाती हैं मेरी
रहे धोखा नजर में गर मुहब्बत भूल जाती हूँ !
मेरी शुहरत से जल कोई मुझे बदनाम करता है
बनाये लाख बातें फिर शराफत भूल जाती हूँ !
मुझे वो प्यार करता है नहीं इकरार करता है
मगर जब सामने हो वो शिकायत भूल जाती हूँ !
तकाजे दोस्ती के कब अदा उसने किए 'पूनम'
मगर हँस के मिले वो जब अदावत भूल जाती हूँ !
***पूनम***
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दरोगा, जज से बड़ा - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप सभी का मुझे शामिल करने के लिए बुलेटिन में...
हटाएंप्रेम में ऐसा ही होता है --- मन का अनकहा सच व्यक्त करती बेहद उम्दा गजल
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों -- ख़ास-मुलाक़ात
शुक्रिया ज्योति जी...
हटाएंप्यार का तकाजा है प्यार से रहना .. बस प्यार ही प्यार ..
जवाब देंहटाएंजहाँ प्यार नहीं वहां Tit for tat
बहुत सुन्दर
शुक्रिया कविता जी
हटाएंमुझे वो प्यार करता है न ही इकरार करता है
जवाब देंहटाएंमगर जब सामने हो वो शिकायत भूल जाती हूँ !
ख़ूबसूरत शे'र
ख़ूबसूरत ग़ज़ल
बहुत खूब
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