तेरे बिन मैं कुछ नहीं...तू मेरे बिन कुछ भी नहीं..
साथ हो कर दूर हूँ मैं.....दूर रह कर कुछ नहीं...!
मुश्किलें आयीं कभी तो हाथ यूँ पकड़ा तेरा..
ये सहारा न रहा....मेरा सहारा कुछ नहीं...!
मेरे दामन में तेरी सांसें महक उठती थीं जब..
दूसरी खुशबू मुझे महसूस होती थी नहीं...!
बेमुरव्वत हो के जब नज़रें पलट जाएँ तेरी..
सोच लेना जिंदगी के तेरे दिन बचते नहीं...!
मैं तो जी लूंगी जुदा हो करके तुझसे ऐ सनम
तू मगर सह पायेगा गम इस जुदाई का नहीं...!
दे सके तो साथ दे देना मेरा सारी उमर..
टूटता हो हौसला अब गम मुझे इसका नहीं...!
चाह को राह मिले..बहुत सुन्दर पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंभावभीनी रचना..
जवाब देंहटाएंसाथ हो कर दूर हूँ मैं ....दूर होकर कुछ भी नहीं ।
जवाब देंहटाएंएक सचमुच का सच ।
बहुत बढ़िया
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