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सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

क्रांति.... एक बाहर....एक भीतर....








क्रांति....

एक बाहर....
एक भीतर....!
सिर्फ शब्द ही नहीं ला सकते हैं क्रांति...
मौन भी ला सकता है !
आस्था हो खुद पे तो...
पर्वत भी हिल सकता है...!
मौन को भी...
विद्रोह की भाषा सिखाई जा सकती है..!
या मौन को भी....

क्रांति का हथियार बनाया जा सकता है...!
और जब यही मौन मुखरित होता तो....
उसके सामने कोई नहीं टिक पाता...!!





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