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शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

हाशिए.......



अपनी जिंदगी को ...

कितने हाशियों में 

बाँट रखा है इंसान ने 

खुद नहीं जानता अपने आप को...

और सारा समय कोशिश करता है 

दूसरों को समझने की....

समझाने की ...!

अपनी ज़िंदगी को सहज,सरल 

न बना कर उलझाने में लगा है !

जरा जरा सी बात पर 

हाशियों को खींचने में 

लगा रहता है अपनों के दरमियाँ..

और जब दूरी बढ़ जाती है 

तो खुद परेशान हो जाता है !

खुद तो जब चाहे...

तब दीवार उठा देता है 

लेकिन दूसरों की रखी एक ईंट भी 

ठोकर देती है उसे...!

जिंदगी सरल भी है और....

सुन्दर भी....!

लेकिन दरमियाँ के ये हाशिए....

इसे सुन्दर रहने दें तब न.....!!






9 टिप्‍पणियां:

  1. हाशिये की भूमिका बहुत खूब रेखांकित करती है कविता!

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  2. बाँट बाँट सब हाट लगाया,
    छूट गया सब, अपने कारण।

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  3. बिलकुल सही कहा दी …। खुद को समझ लेना ही काफी है |

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  4. sundar....
    Insani rang bade girgitiya hai (chameleon types)...samajhna ek gutthi hi hai...:-)

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  5. दूसरों की रखी इक ईंट भी ठोकर देती है

    बहुत सही कहा आपने

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