बुधवार, 29 दिसंबर 2010

शांति-शांति-शांति....




लम्बे-लम्बे बांसों के झुरमुट में,बड़े-बड़े पेड़ों के बीच,ऊँची-ऊँची इमारतों और मकानों के बीच में जैसे कुहासा अपनी जगह बना लेता है,हर छोटे-बड़े space को भर देता है,मन की शान्ति भी कुछ  उसी तरह है..एक बार गर space बनाने लगे तो हर जगह,हर सम्बन्ध और रिश्ते में,किसी भी स्पर्श में,किसी भी emotion में पैर पसारती जाती है.. ऊपर-ऊपर से तो आप हिले हुए दिखाई देते हैं लेकिन भीतर-भीतर कुछ पसरता जाता है कुहासे की तरह....शांति-शांति-शांति....

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

कलाकार...................

पुराने पन्नों से
२२दिसम्बर.2008






तुम एक कलाकार हो!
हाँ !
वाकई में...
तुम एक कलाकार हो !
एक कलाकार की तरह
भावुक,संवेदनशील.....
इसीलिए तो मैंने खुद को
कच्ची,गीली मिटटी सा
सौंप दिया था तुम्हें!
कि थोड़ा प्यार.....
थोड़ा कोमल सहारा तुम्हारे हाथ का.......
और फिर जैसी चाहो
मूरत गढ़ लो तुम अपने मुताबिक..
कर लो मेरा श्रृंगार.....
जैसे तुम चाहो...!
और आज तुम्हारी वह मूरत तुम्हारे सामने है
एकदम तुम्हारे मुताबिक....
तुम ने खुद की तरह
उस कच्ची मिटटी को
अपना आकार लेने के लिए छोड़ दिया...!
जब समय था हाथ के कोमल सहारे का...
तुमने समय की धूप में
उसे तपने के लिए छोड़ दिया !
मन के गीलेपन को
शब्दों की बौछार से सुखा दिया !
आज वह मूरत.............
तुम्हारी मनचाही मूरत..
तुम्हारे सामने है,
तुम्हारे सारे सवालों-जवाबों के साथ
मगर एकदम पक्की...
यह टूट तो सकती है
पर पुराना वो मिटटी का गीलापन
गायब हो गया है कहीं..
हाँ,तुम एक कलाकार ही हो
तुम मूरत तो गढ़ सकते हो
टेढ़ी-मेढ़ी..
चित्र तो उकेर सकते हो
सादे-सफ़ेद कनवास पर..
पर उस चित्र की जीवन्तता
और मूरत में इंसानी भावुकता और संवेदनशीलता
नहीं डाल सकते हो कभी...!
एक कलाकर...................
एक अच्छा कलाकार
इससे ज्यादा और कर भी क्या सकता है ???????

***पूनम***

किया है इस तरह से तुझसे हमने प्यार............




किया है इस तरह से तुझसे हमने प्यार बहोत!
तेरे आने का भी हमने किया इंतज़ार बहोत!!

प्यार तो प्यार है, क्या लेना और क्या देना!
लेकिन हिसाब उसमें भी तू ने किया बहोत!!

हमतो समझे थे तेरे प्यार की है ये सौगात!
जताया तूने है हमपे किया एहसान बहोत!!

बीते ज़माने,हम न समझ पाए हैं तुझे!
देखा तुझे भी हमने है परेशान बहोत!!

जिंदगी बीतनी है यूं भी बीत जाएगी ! 
किसी के साथ का करो न इंतज़ार बहोत!! 

रविवार, 26 दिसंबर 2010


चलना संभल-संभल के

इंसानियत की अब किसे दरकार है यहाँ !
दुश्मन भी दोस्त की तरह मिलते हैं अब यहाँ !!

कहते फिरे है खुद को हरिश्चंद्र जो जनाब !
देखा है हमने झूठ बोलते उन्हें यहाँ !!

कहते हैं लोग ज़िन्दगी में हैं मुसीबतें !
लाये मुसीबतें हैं जो ढोकर करके खुद यहाँ !!

देते उलाहना हैं जो हर बात पर हमें !
देखा है हमने रंग बदलते उन्हें यहाँ !!

हम जायेंगे जो दूर हमें मिल न पाओगे 
हम जैसा ढूँढ पाओगे न सरकार तुम यहाँ !!





शनिवार, 25 दिसंबर 2010

मेरी डायरी से
सितम्बर,२००७
                                                                       
मेशा हम तभी कुछ कहते हैं जब सामने कोई सुनने वाला हो,हमेशा हम तभी गाते हैं जब सामने कोई तारीफ करने वाला हो.कभी खुद से बातें करें-कितना आनंद आता है,कभी खुद के लिए अकेले में गाएं-कितना सुकून मिलता है.लोग बाथरूम में क्यों  गाते हैं?क्योंकि उन्हें लगता है कि वो अच्छा नहीं गाते और वहां उन्हें सुनने वाला कोई नहीं है,शायद इसलिए भी कि सुनने वाला उनकी तारीफ नहीं कर पायेगा और वो छिपने की एक अच्छी जगह खोज लेते हैं.लोग इसीलिए सबके साथ बैठ कर चुटकुले सुनाते हैं और हंसते-मुस्कुराते हैं क्योंकि अकेले में हंसना-मुस्कुराना उन्हें अजीब लगता हैं.लेकिन मज़ा तो तब है जब कभी-कभी आप खुद ही कहें-खुद की सुनें,गाएँ भी तो सिर्फ अपने लिए गाएँ और मुस्कुराएँ भी तो सिर्फ अपने लिए मुस्कुराएँ--सच में बड़ा मज़ा आता है कि सामने वाला सोंचे और ये अंदाजा लगाये कि आप किस बात पर मुसकुरा रहें हैं ??? या कहीं आप पागल तो नहीं ???

इंसान

कितना नासमझ है ये इंसान !!
अपने मन की थाह नहीं ले पाता
और दूसरों के मन की जानने में 
हमेशा लगा रहता है....
अपने बेचैन मन को कैसे शांत करे?? 
नहीं जानता....
लेकिन- दूसरों को कैसे खुश करे,
जी-जान लगा देता है.
कहते हैं --
जिसके पास जो होता है
वही बांटता है.....
सही है!!
सारी कोशिशों के बावजूद भी
अपने मन की  दशा को 
छुपा नहीं पाता है वह.
कहीं ना कहीं से
उसके अस्तित्व से उसकी मनः-स्थिति  
झांकती-ताकती ही रहती है.
क्योंकि-
चेहरे की हंसी में छिपा दर्द
सामने वाले की नज़रों से छिपता नहीं है,
मन के भाव भी छिपाए नहीं छिपते हैं.
मन को समेटते-समेटते
अन्दर तक कुछ सिकुड़ सा जाता है,
वो बाहर के फैलाव के साथ
कितना भी कोशिश करो 
बराबर नहीं आ पाता है!!
क्यों?
क्योंकि कमजोरी उसके भीतर है,
वह बाहर-भीतर एक सा नहीं है,
स्वाभाविकता कहीं खो गई है.
अपनी चाहतों,एहसासों को जीते-जीते
वह बंध गया है उसी में...
ज़िन्दगी में उमंग लाने के लिए 
इन्हीं एहसासों,
इन्हीं चाहतों की ही तो कमीं थी  
अभी तक---
अब ये एहसास हैं तो
ज़िन्दगी की नई शुरुआत है.
कहीं कुछ छुटा तो
कहीं कुछ मिला भी.
जीने का मकसद..
कुछ करने की इच्छा...
कुछ कर दिखाने का हौसला !
क्या नहीं है ज़िन्दगी में अब !
फिर भी कहीं कुछ missing है..
क्या ?
पता नहीं ?
 जान कर भी जानना नहीं चाहता
कौन समझे और किसको समझाए??
ज़रुरत भी क्या है??
 ऊपर-ऊपर की ज़िन्दगी में तो 
खुश ही दिखता है वह
भीतर की देखने  की किसको फुरसत है?
हर किसी की ज़िन्दगी में
कुछ ऐसा ही घट रहा है रोज़-रोज़--
फिर भी ख़ुशी-ख़ुशी जी रहे हैं सब.
न खुद को जानने की ज़रुरत,न समझने की,
बस इसी तरह ज़िन्दगी जी रहे हैं सब.
कभी किसी के लिए,कभी किसी के लिए !!

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

जीवन


जीवन में सुख दुःख  
उतार-चढ़ाव आते ही रहते है
हर सुख के बाद दुःख
अपने बारी के इंतज़ार में रहता है.
न सुख टिकता है ....
और न दुःख ही.
इसलिए हर दो सुखों के बीच-
 दुःख है !
लेकिन दुखों के बीच जो है-
वही जीवन है !
ठहराव है !!
इंसान बस सुख की कामना करता है
और भागता रहता है
आनंद और सुख के लिए..
छटपटाता रहता है उन्हें पाने के लिए
लेकिन दुःख आने पर भी
जो विचलित न हो....
और सुख में भी अपने "मैं"  को अलग रखे
आछेप और बंधनों के होने पर भी
स्थिर रहे,ठहरा  रहे
साक्षी भाव से सब अपने साथ
घटता हुआ देखे,अनुभव करे
सम व्यवहार,सम विचार,और सम भाव रहे
वही मुक्त है !!!!!
चाहतें---                                                                                                                                                                                                        चाहतें जिंदगी की  
इतनी ढेर सारी......
कि-
हम दौड़ते रहते हैं  
उनके पीछे-पीछे,
उन्हें पूरा करने के लिए
लेकिन...
वो आगे-आगे ही
भागती जाती हैं हमसे .
फिर एक दिन ऐसा आता है कि..
हम उन्हें ख्वाबों में जीने लगते हैं
हर समय,हर जगह
उन्हें ही साथ लिए फिरते हैं
लेकिन ज़िन्दगी की सच्चाई
ये भी नहीं सह पाती
बार-बार इन चाहतों को
हमारे ख्वाबों से अलग करना चाहती है.
सच भी है..
अगर हम चाहें तो
इन ख्वाबों को सच कर सकते हैं
बस ज़िन्दगी की सच्चाई को
दर-किनार करना होगा...
सच्चाई तो सच्चाई ही रहेगी
बस...
हमें अपने आप से लड़ना होगा !!!!!

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

कितने खुश होके गैरो हरम से उठाते हैं
और थके पाँव से हम अपने घर को लौटते हैं.

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वो दिल जो औरों की नासाज-ए-तबियत से हो जाता है बेचैन
बड़ी देर के बाद मुझसे पूछे है की तेरा हाल क्या है ???

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वो जो औरों की झुकी नज़रों का हाल जान लेते हैं
कांपते होठों का दर्द ,दिल की जुबान जान लेते हैं,
और हो जाते हैं बेचैन उनकी नासाज-ए-तबियत से....
मेरी हालत-ए-तबियत के लिए जुबां से काम लेते हैं .

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किसी की आवाज़ सुनने को बेताब हो उठता है दिल
किसी की नज़र-ए-इनायत के लिए मचल उठता है दिल,
हंसी किसी की सुन फिर से धड़क उठता है दिल
बचा-बचा के नज़र फिर किसी को देखता है दिल.

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हमने सोचा  ही  न था ऐसा भी दिन आएगा
जो हमारा है किसी और का हो जायेगा,
हम तो समझे थे,अब जा के वो समझा है हमारे दिल की बात..
क्या पता था कि वो इससे भी मुकर जायेगा !!!

२४ नवम्बर ,२००६

पुराने पन्नों से
ज्ञान की परिभाषा!!
दूसरों के पास
अपनों से दूर..
इतनी दूर कि-
एहसास ही ख़त्म होने लगे
कि हम साथ है.....




२३सितम्बर, 2006

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

दूसरे  की जान बचाने  के  लिए
 बोला गया झूठ-
पुण्य हो जाता है,
 और  खुद  को  बचाने के  लिए
 बोला गया  झूठ भी
पाप  हो जाता  है.
 लेकिन -
 इसका  एहसास कोई करे  भी  तो  कैसे?
 वह  तो  इसी  सोच में है  कि
 खुद तो बच   जाये,
भले   ही दूसरा सूली  पर चढ़ा  दिया  जाये--
 भले  ही खुद को  बचाने के लिए
 उसे कितने ही झूठ  बोलने  पड़ें..
पर कोई  है....
 जो  सब  देख रहा  है,
हर झूठ  -सच का  हिसाब-
हमें  बिना  बताये  रख रहा  है.
 उसे  किसी की  गवाही की ज़रुरत  नहीं  पड़ती,
उसके  लिए दोस्ती और  रिश्तों की-
कोई  अहमियत  नहीं होती..
 बस ,इनसान  के मन में
क्या  चल रहा   है?
 वो  जानता  है....
वो  सब जानता है......


२ जनवरी, 2010
तुम्हारे लिए ----

तुम हो साथ मेरे-
पल - पल,
हर  छन.
हर अच्छे एहसास  में
हर अवसाद भरे पल में भी .
ज़िन्दगी में वो सुख के पल पाए हैं
जब तुम थे साथ मेरे--
केवल तुम....
ज़िन्दगी का हर वो लम्हा
जहाँ  कहीं  मैं अकेली  थी-
उदासी  भरे  पलों में
उस समय में भी थे
तुम साथ-साथ ही-
लेकिन थोड़ी  दूरी पर
चलते हुए
पर थे  साथ-साथ.......


१जनवरी, 2०१०

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

तुम्हारे लिए..............



सारे एहसासों  का
एहसास  भी अजीब  है,  

कोई साथ हो 
फिर भी हो साथ-साथ... 
ऐसा एहसास भी अजीब है
शरीर हों साथ
पर मन हो साथ..

ऐसा साथ भी अजीब है,
जिस्मों में  हो दूरी
पर मन हों साथ-साथ... 

ऐसे साथ का एहसास
यह और भी अजीब है !

तुम्हारे लिए.........
तेरे आने का है  इंतज़ार
मैंने  तुझको पुकारा भी .
तू है सामने मेरे...
मैंने हाथ  बढाया भी ,
पर ए  खुदा !
मेरी लाख कोशिशों के बावजूद भी..
तू ये फासला न  तय कर सका, 
बढ़ने दीं  तूने ही मुश्किलें....
हमारे दरम्यान ,
और  खुद  हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा,
फिर भी मेरी कोशिशें जारी हैं
तुझ तक पहुँचने की ,
तू भले ही ना आये मुझ तक
लेकिन..............
एक न एक दिन
मैं  ये फासला तय कर ही लूंगी !!!

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

अच्छाई और बुराई...
हर इंसान में
बराबर से बाँटता है ईश्वर.
कभी....
किसी में थोडा ज्यादा..
 किसी में थोडा कम,
कभी सोचा है आपने-
कि
आपसे अच्छे से पेश आने वाला
किसी और के लिए
दुखदाई भी हो सकता है
और आप खुद भी तो
किसी के लिए अच्छे
और किसी के लिए बुरे होते हैं
तो...
 किसने  ये हक दिया हमें
कि-
 हम नापें,तोलें,तुलना करें
 किसी की किसी से
और फिर लग जाये
उस को बदलने में
कभी भीतर  से-
 कभी बाहर से,
 खुद को नज़रंदाज़ करके
किसी और के
व्यव्हार का नापा-जोखा करें
और फिर...
सीधे-सीधे ये फरमान जारी करे
कि फलां कितना अच्छा है
और फलां कितना बुरा...
 जबकि सामने वाले की तरह ही
अच्छाई  और बुराई
हमारे  भीतर  भी है
कभी सोचा है कि
 सामनेवाला भी
हमें हमारी ही नज़र से
 देखता होगा.......................................
ज़िन्दगी की बिसात पर..
मोहरे हैं हम,
कभी  सिमटे  हुए
तो...
कभी बिखरे हुए.
लोग  न  जाने क्या-क्या
सोच लेते हैं हमारे बारे में...
जबकि-
उन्हें खुद नहीं पता
कि..
वो क्या हैं खुद....???

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

आज की  शुरुआत, बस यूँ...ही....
ये  मुलाकात, बस यूँ...ही....
क्या करूँ मैं बात, बस यूँ... ही....