शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

जीवन


जीवन में सुख दुःख  
उतार-चढ़ाव आते ही रहते है
हर सुख के बाद दुःख
अपने बारी के इंतज़ार में रहता है.
न सुख टिकता है ....
और न दुःख ही.
इसलिए हर दो सुखों के बीच-
 दुःख है !
लेकिन दुखों के बीच जो है-
वही जीवन है !
ठहराव है !!
इंसान बस सुख की कामना करता है
और भागता रहता है
आनंद और सुख के लिए..
छटपटाता रहता है उन्हें पाने के लिए
लेकिन दुःख आने पर भी
जो विचलित न हो....
और सुख में भी अपने "मैं"  को अलग रखे
आछेप और बंधनों के होने पर भी
स्थिर रहे,ठहरा  रहे
साक्षी भाव से सब अपने साथ
घटता हुआ देखे,अनुभव करे
सम व्यवहार,सम विचार,और सम भाव रहे
वही मुक्त है !!!!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. साक्षी भाव से सब अपने साथ
    घटता हुआ देखे,अनुभव करे
    सम व्यवहार,सम विचार,और सम भाव रहे
    वही मुक्त है .......


    उम्दा एवं प्रेरक रचना।

    आभार पूनम जी।

    .

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  2. जीवन में सुख दुःख
    उतार-चढ़ाव आते ही रहते है
    हर सुख के बाद दुःख
    अपने बारी के इंतज़ार में रहता है.
    न सुख टिकता है ....
    और न दुःख ही.

    सुख-दुःख के आवागमन को बहुत सुन्दर और सादगीपूर्ण तरीक़े से पिरोया है आपने अपनी कविता में.
    प्रभावशाली अभिव्यक्ति.

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  3. हर सुख के बाद दुःख
    अपने बारी के इंतज़ार में रहता है.
    न सुख टिकता है ....
    और न दुःख ही.
    इसलिए हर दो सुखों के बीच-
    दुःख है !
    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
    आदरणीय Punam जी
    सादर प्रणाम
    दार्शनिक परन्तु जीवन से जुड़े भाव कि अभिव्यक्ति ...शुक्रिया

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  4. साक्षी भाव से सब अपने साथ
    घटता हुआ देखे,अनुभव करे
    सम व्यवहार,सम विचार,और सम भाव रहे
    वही मुक्त है !!!!!
    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
    परन्तु ऐसे भाव पर पहुंचना आसन नहीं ...सशक्त प्रयास करने पड़ते हैं ....शुक्रिया

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