दूसरे की जान बचाने के लिए
बोला गया झूठ-
पुण्य हो जाता है,
और खुद को बचाने के लिए
बोला गया झूठ भी
पाप हो जाता है.
लेकिन -
इसका एहसास कोई करे भी तो कैसे?
वह तो इसी सोच में है कि
खुद तो बच जाये,
भले ही दूसरा सूली पर चढ़ा दिया जाये--
भले ही खुद को बचाने के लिए
उसे कितने ही झूठ बोलने पड़ें..
पर कोई है....
जो सब देख रहा है,
हर झूठ -सच का हिसाब-
हमें बिना बताये रख रहा है.
उसे किसी की गवाही की ज़रुरत नहीं पड़ती,
उसके लिए दोस्ती और रिश्तों की-
कोई अहमियत नहीं होती..
बस ,इनसान के मन में
क्या चल रहा है?
वो जानता है....
वो सब जानता है......
२ जनवरी, 2010
बोला गया झूठ-
पुण्य हो जाता है,
और खुद को बचाने के लिए
बोला गया झूठ भी
पाप हो जाता है.
लेकिन -
इसका एहसास कोई करे भी तो कैसे?
वह तो इसी सोच में है कि
खुद तो बच जाये,
भले ही दूसरा सूली पर चढ़ा दिया जाये--
भले ही खुद को बचाने के लिए
उसे कितने ही झूठ बोलने पड़ें..
पर कोई है....
जो सब देख रहा है,
हर झूठ -सच का हिसाब-
हमें बिना बताये रख रहा है.
उसे किसी की गवाही की ज़रुरत नहीं पड़ती,
उसके लिए दोस्ती और रिश्तों की-
कोई अहमियत नहीं होती..
बस ,इनसान के मन में
क्या चल रहा है?
वो जानता है....
वो सब जानता है......
२ जनवरी, 2010
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
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