मंगलवार, 9 नवंबर 2010

तुम्हारे लिए..............



सारे एहसासों  का
एहसास  भी अजीब  है,  

कोई साथ हो 
फिर भी हो साथ-साथ... 
ऐसा एहसास भी अजीब है
शरीर हों साथ
पर मन हो साथ..

ऐसा साथ भी अजीब है,
जिस्मों में  हो दूरी
पर मन हों साथ-साथ... 

ऐसे साथ का एहसास
यह और भी अजीब है !

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह!
    शरीर हों साथ
    पर मन न हो साथ..ऐसा साथ भी अजीब है
    बहुत खूब.

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  2. अजीब से एहसासों से लिखी भावपूर्ण रचना ...मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  3. संगीताजी ,बहुत बहुत धन्यवाद सुझाव के लिए,आपके निर्देशानुसार मैंने बदलाव कर लिया है,यदि कुछ और असुविधा हो तो कृपया मुझे निर्देश देती रहें. आपके सुझाव से लिखने में काफी सुविधा रहेगी.

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  4. रविजी,बस मन के भाव जो भाव हैं उन्हीं को सीधी-सरल भाषा में लिख डाला है.धन्यवाद..

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  5. सुन्दर अहसासों के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति

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  6. वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई

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