सोमवार, 13 दिसंबर 2010

कितने खुश होके गैरो हरम से उठाते हैं
और थके पाँव से हम अपने घर को लौटते हैं.

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वो दिल जो औरों की नासाज-ए-तबियत से हो जाता है बेचैन
बड़ी देर के बाद मुझसे पूछे है की तेरा हाल क्या है ???

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वो जो औरों की झुकी नज़रों का हाल जान लेते हैं
कांपते होठों का दर्द ,दिल की जुबान जान लेते हैं,
और हो जाते हैं बेचैन उनकी नासाज-ए-तबियत से....
मेरी हालत-ए-तबियत के लिए जुबां से काम लेते हैं .

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किसी की आवाज़ सुनने को बेताब हो उठता है दिल
किसी की नज़र-ए-इनायत के लिए मचल उठता है दिल,
हंसी किसी की सुन फिर से धड़क उठता है दिल
बचा-बचा के नज़र फिर किसी को देखता है दिल.

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हमने सोचा  ही  न था ऐसा भी दिन आएगा
जो हमारा है किसी और का हो जायेगा,
हम तो समझे थे,अब जा के वो समझा है हमारे दिल की बात..
क्या पता था कि वो इससे भी मुकर जायेगा !!!

२४ नवम्बर ,२००६

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5 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन सभी रचनाये उम्दा ............

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  2. आपकी कविताये पढाने को बेताब हो उठता है दिल
    आपकी कविताओ की गहरे समझ मचल उठता है दिल.

    पुनमजी, आपकी कविताये वाकई बहुत ही बढ़िया है.

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  3. पूनम जी,
    आपका ह्रदय से धन्यवाद! "सच में" पर आकर सुन्दर विचार व्यक्त करने के लिये!
    आते रहें "सच में" पर।
    आपके सुन्दर ब्लौग पर आकर अच्छा लगा!

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  4. poonam ji aap mere blog par aain aapko "tumhare liye" pasand aai hardik dhanyawad , aapki uprokt rachna padhi bahut achchi lagi thoda samay nikaal kar sabhi padhunga. punah dhanyawaad.

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  5. आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

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