एक बाहर....
एक भीतर....!
सिर्फ शब्द ही नहीं ला सकते हैं क्रांति...
मौन भी ला सकता है !
आस्था हो खुद पे तो...
पर्वत भी हिल सकता है...!
मौन को भी...
विद्रोह की भाषा सिखाई जा सकती है..!
या मौन को भी....
क्रांति का हथियार बनाया जा सकता है...!
और जब यही मौन मुखरित होता तो....
उसके सामने कोई नहीं टिक पाता...!!
और जब यही मौन मुखरित होता तो....
उसके सामने कोई नहीं टिक पाता...!!
मौन में विचारों के अनुनाद पलते हैं।
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश...
जवाब देंहटाएं