ज़िन्दगी मिल गयी...जीना तो अभी बाकी है....
बहुत हैं क़र्ज़...उतरना तो अभी बाकी है....!
किसी भी हद से गुज़र जाए इंसान मगर...
मौत की हद से गुज़ारना तो अभी बाकी है...!
खुश रहे तू..मेरे हमदम..मेरे दिलदार... सनम...
आइना दिल है...उतरना तो अभी बाकी है...!
है मुहब्बत तो मुझे खुल के क्यूँ नहीं कहता...
झुकी है मेरी नज़र...इसमें शर्म बाकी है...!
मेरी वफाओं का तेरी नज़र में मोल नहीं....
हो अदावत तेरी जानिब वो ख़ला बाकी है...!
***पूनम***
बस अभी अभी....
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : मकर संक्रांति और मंदार
अवश्य दिग्विजय जी....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरी रचना को प्रोत्साहन देने के लिए...
है मुहब्बत ......बाकी है .....बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति के लिये आभार आपका....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब दी
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति।
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