बहुत दिन हो गए
हमें अपनापन का नकाब पहन कर
दुनिया से अपना सच छुपाते हुए....!
इस नकाब के पीछे है
हमारे रिश्तों की सच्चाई !
कुछ चाहे ...कुछ अनचाहे रिश्ते
कुछ रिश्तों के वजूद न रह कर भी हैं...
और कुछ रिश्ते साथ रह कर भी बेवजूद हैं !
बड़ी थकन भरी है ये दोहरी जिंदगी...!
आओ...
अपने इन निर्जीव सम्बन्ध को...
पूरी नग्नता के साथ
दुनिया के सामने उजागर करते हैं...!
मेरे लिए ये ज़रा भी मुश्किल नहीं...!
और तुम्हारे लिए भी सच सामने लाना
ज्यादा मुश्किल न होगा....!!
आज हम अपना अपना
ये झूठा नक़ाब उतार फेंकते हैं.....
और कुछ देर के लिए ही सही....
अपने इंसान होने का अभिनय करते हैं... !!
आपने लिखा....
जवाब देंहटाएंहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 10/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
कितने ही मुखौटे उतार लें फिर भी कोई न कोई मुखौटा चढ़ा ही रहता है .... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसच सच.....शानदार ।
जवाब देंहटाएंसत्य से रूबरू ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंwh bahut sunder achha lga aapka blog
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंमन को विकारों को उभारने से क्या होगा, मन ही मन गल जायें वे।
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .... बहुत ही बेहतरीन रचना... गहरे और उम्दा एहसास उतार दिए आपने एक एक अल्फ़ाज़ में ,... बहुत खूब ...
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