दुआयें दे रही कब से तुझे मेरी सदाएं हैं...
हमारे बाद भी रह जायेंगी मेरी वफाएं हैं...!
मुझे उम्मीद कब थी तुझसे मेरे हमसफ़र बतला...
मेरे दामन में आ सिमटी फ़कत तेरी जफ़ाएं हैं...!
तू मेरा था...तू मेरा है...रहेगा कल भी तू मेरा...
नज़र बदले कभी तेरी...यही मेरी दुआएं हैं....!
***पूनम***
एक कोशिश...अभी अभी....
बहुत ही सुन्दर..
जवाब देंहटाएंकाश जल्दी ही नज़र बदले ।
जवाब देंहटाएंkhubsurat.........
जवाब देंहटाएंdua kaam kare...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिये ओम बना और उनकी बुलेट से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
पढ़ कर मुंह से वाह वाह ही निकलता हैं
जवाब देंहटाएंसच में बेहद सार्थक रचना है।
बहुत अच्छी लगी
खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब......आखिरी शेर में नज़र 'न' बदले होना था शायद।
जवाब देंहटाएंभाई...
हटाएंमेरे हिसाब से तो ठीक ही है...!
दोनों शेरों के साथ इसका भाव ठीक बैठता है...!!