चलती है साँस यूँ तो मगर जिंदगी भी हो...
रहती है साथ भीड़ मगर आदमी भी हो...!
फीकी पड़ी हुई हैं जमाने की रौनकें...
कुछ देर यार जिंदगी में मुफलिसी भी हो...!
दौलत से कब बड़ा हुआ है कोई आदमी....
सूरत के साथ साथ ही सीरत भली भी हो...!
इंसानियत की बात भी करना फ़जूल है...
झूठी रवायतें सही बातें खरी भी हो...!
इस ज़िन्दगी में आपको दुश्मन बहुत मिले....
हो खैर अगर इनसे कभी दोस्ती भी हो...!
मिल जायेंगे बहुत रक़ीब इस जहान में...
ये हो ख्याल हाथ में उसके छुरी भी हो...!
तारों भरा हो आसमाँ 'पूनम' की रात में....
आँखों में प्यास न हो मगर तिश्नगी भी हो....!
***पूनम***
31 जनवरी, 2016
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 01 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंbehatreen rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, पूर्णता पाता अधूरापन...
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