आप जब से हमें नसीब हुए... जानशीं दोस्त कुछ रक़ीब हुए...!! वस्ल था जब तलक फ़िजा महकी... हिज़्र में हालत क्यूँ अजीब हुए...!! दिन में रौशन हुए हैं मयखाने... गम के प्याले मेरे हबीब हुए...!! हुस्न को बेनकाब जब देखा... नासमझ भी सभी अदीब हुए..!! रात पूनम की और नींद नहीं, खुशनुमा पल भी अब सलीब हुए...!! ***पूनम***
क्रांति.... एक बाहर.... एक भीतर....! सिर्फ शब्द ही नहीं ला सकते हैं क्रांति... मौन भी ला सकता है ! आस्था हो खुद पे तो... पर्वत भी हिल सकता है...! मौन को भी... विद्रोह की भाषा सिखाई जा सकती है..! या मौन को भी....
क्रांति का हथियार बनाया जा सकता है...! और जब यही मौन मुखरित होता तो.... उसके सामने कोई नहीं टिक पाता...!!