मेरा इश्क मेरा जुनून है....नहीं तुझसे कोई गिला किया...
मेरे नाम से तू उबर गया...नहीं मुझसे फिर तू मिला किया
मेरी चाहतें....मेरी नेमतें....मेरे अधखुले कई ख्वाब हैं...
जो कुबूल हो भी तुझे कभी....मेरे आंसुओं ने गिला किया
वो जो मेहरबां था कभी मेरा....नहीं राजदां है वो अब मेरा
कभी दिल गवां के भी हंस दिए....कभी दिल से दिल का सिला दिया
मेरा दिल कभी तेरे नाम था...मेरे दिल में तू सरेआम था...
रही अब तलब न मुझे तेरी...दिल-ए-गुल था...यूँ ही खिला किया
मैं तेरे नसीब में थी कहाँ...तू मेरा नसीब भी न रहा...
जो बनी दुआ तो सिमट गयी...तन्हाई को भी जिला दिया
मैं थी एक शम्मा जो बज़्म में...नहीं दे सकी तुझे रौशनी
मेरा जिस्म जल के न मिट सका...तुझे खाक में तो मिला दिया
वाह । जो जलो तो सूरज और जो बुझो तो चाँद...
जवाब देंहटाएंखुबसूरत सी ग़ज़ल वाह दी वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंLatest post हे निराकार!
latest post कानून और दंड
वाह....बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंsundar gajal ..........wah
जवाब देंहटाएंbahot achchi lagi......
जवाब देंहटाएंउफ़..बेहद उम्दा..
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर नज्म
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें
http://sanjaybhaskar.blogspot.in