मेरे जीवन की अभिलाषा...
न जाने कब पूरी होगी...
अस्फुट से स्वर की चंचलता...
तुझ से मिल कर स्थिर होगी...
तू परिचित भी है..अपरिचित भी...
तू अपना भी...बेगाना भी...
न जाने ये कैसा अभिनय...
जाना भी है...अनजाना भी...
मेरे अपने...मेरे सपने...
तू पास भी है..तू दूर भी है...
तू मुझमें है आधा -आधा...
तू मुझमें ही सम्पूर्ण भी है...!!
***पूनम***
सच्ची, सहज दिल की बात ..
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता मेरे भी ब्लॉग पर आये
जवाब देंहटाएंpunam jee
तू तू न रहा और मैं मैं न रहा... …अति सुन्दर दी |
जवाब देंहटाएंवही है.. वही है.. उसके सिवा कुछ कहीं नहीं है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर..
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