जरूरत क्या पड़ी हमको मुहब्बत आजमाने की...
उन्हें आदत है इस तरह से अक्सर भूल जाने की...!!
नहीं मिलता है गर दिल तो नहीं कोई हमें शिकवा...
नज़र मिल जाए तो भी क्या ज़रूरत मुस्कुराने की...!!
निभाना दुश्मनी गर हो तो फिर किस बात का है ग़म...
करो पूरी तरह कोशिश दिलों के टूट जाने की...!!
नज़र आई तो थी उम्मीद की इक रौशनी हमको...
जमाने ने की कोशिश हर तरह उसको बुझाने की...!!
तुम्हीं मुखबिर तुम्हीं मुजरिम तुम्हीं हो मुंसिफ ए आजम...
बताएँ क्या तुम्हें हम बात अपने हर ठिकाने की...!!
अगर चाहो तो आ बैठो कभी नज़दीक 'पूनम' के...
बताएँगे तुम्हें सब बात हम यूँ दिल लगाने की...!
***पूनम***
02/08/2015
बेहतरीन गजल..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी
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