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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

कर्ज़........





तमाम लोग है दीदार को तरसे मेरे...
और होंगे तेरे दीदार पे मरने वाले.....!

हमारे बाद ज़माने में ये चरचे र्होंगे..
एक हम ही थे यहाँ प्यार निभाने वाले.....!

हमने सोचा न था वो हमको भूल जायेगा...
एक हम ही थे उसे दिल से लगाने वाले....!

मैं किस तरह से शुक्रिया दूँ अभी से तुझको  
न जाने  कितने  क़र्ज़ हैं उतारने वाले...!!

***पूनम***


9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ज़ालिम हैं ये ज़माने वाले.........बहुत खूब।
    कभी भूल के भी मेरी गली आया करो.........

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  2. कर्ज तले हम दबे हुये हैं,
    कौन उतारे, रोज बढ़े जो।

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति की है इन साधारण से शब्दों मे भी बहुत गहनता है सा

    http://nimbijodhan.blogspot.in/

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