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बुधवार, 23 नवंबर 2011

फितरत...





आइना साथ लिए फिरते हैं जो गैरों को दिखाने के लिए !
अपने   ही  अक्स पे   कभी  खुद  गौर  किया   होता !!

हर समय देखते रहते है फितरत  औरों की जो !
अपनी *फ़ित्न:अंगेज़ी पे भी कभी गौर किया होता !!
(*भड़काना या षड्यंत्र करना)  

दुहाई  देते  हैं जो हर वक़्त *तर्बियत की हमको !
अपने  भी  तर्बियत पे कभी गौर किया होता !!
 (*संस्कार-बात करने का तरीका,)

*फ़िक्र:बाज़ी में लगती है जब तबियत किसी की यारों !
**फिक्रे उक्व़ा,***फिक्रे फ़र्दा उसे जनाब कहाँ है होता !!
(*फ़िकरे कसना,व्यंग्य करना,**परलोक की चिंता,
 ***कल की चिंता)




16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..

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  2. लाजबाब प्रस्तुति पूनम जी.
    *फिक्र:बाजी', **फिक्रे उक्वा, और ***फिक्रे फर्दा
    वाह! क्या कहना.
    काश ! फिक्र बाजी से मौला बचाए.
    अब तो बस फिक्रे उक्वा की ही तमन्ना है जी.

    बहुत बहुत आभार इस अनुपम प्रस्तुति के लिए.

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  3. ......"अपने ही अक्श पे कभी गौर किया होता!"
    वाह! गज़ब!

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  4. Hi..

    Duniya bhar main dosh jo dhoondhe..
    Apne dosh wo jaane na..
    Dawa jo pahchan ki karte..
    Khud ko wo pahchane na..

    Kahte bhi hain.. Par updesh kushal bahutere, so, jo aap dusre ummeed karte hain use aapne aap par aazma kar dekhen to..

    Sundargazal..

    Deepak

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  5. सच को शब्दों में बेहद ही खूबसूरती से ढाला गया है,
    सुन्दर प्रस्तुति|

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  6. ज़माने का दस्तूर लिख दिया है ..बहुत खूब

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  7. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है - फ़िक्र:बाज़ी की जगह फिकरेबाज़ी भी हो सकता था शायद |

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  8. अपने ही अक्श पर कभी गौर किया होता....
    सारी बात तो यहीं से ही है ना पूनम जी ..खुद पे गौर करना जैसे ही शुरू होता है वैसे ही फिकरे और फ़िक्र दोनों गायब हो जाते हैं ...
    सुंदर गज़ल मगर जरा क्लिष्ट है ! :)

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  9. Where is my comment punam Ji? (Please Check you spam comments)

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  10. आपकी संपत्ति :-)...... (मेल कर रहा हूँ आप स्वयं ब्लॉग की पोस्ट में डाल दें)


    एक खुबसूरत और बेहतरीन ग़ज़ल.....खुबसूरत अशआर|


    मुझे लगा - फ़िक्र:बजी की जगह फिकरेबाजी लफ्ज़ का इस्तेमाल बेहतर होता.......बाकि पोस्ट बहुत अच्छी लगी|


    - इमरान अंसारी

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  11. बेहद खुबसूरत लिखा है , अच्छी लगी .

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