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अजीब संयोग है....
हजारों साल बीत गए
राम और कृष्ण को हुए,
सीता और राधा को हुए...!
लेकिन हम जब भी
उदाहरण देते हैं आज भी
किसी नारी को
पतिव्रता की तो
सीता से.....!
लेकिन प्रेम के लिए
राधा का उदाहरण देकर
मान्यता न दे पाए...!!
क्यों.....???
गर देखा जाए तो
सीता में प्रेम लुप्त है
और राधा में पतिव्रता...!
और पुरुष विवाह होते ही
राधा सा प्रेम तो
भूल जाता है लेकिन
पत्नी को सीता की
पतिव्रता ही समय-समय पर
याद दिलाता है....!!
लेकिन आज भी
हम पुरुषों को पत्निव्रता के लिए
राम का उदाहरण न दे पाए !
आज भी अपने लिए
सीता सी पत्नी चाहने वाले
ज्यादातर पुरुष
अपने प्रेम के लिए
कृष्ण का ही
उदाहरण देते नज़र आते हैं !
क्योंकि वहां सुविधा है,
कोई बंधन नहीं है...
न विवाह का, न रिश्ते का
न परिवार का, न समाज का !!
यहाँ एक खुलापन है...
जो हर स्वभाव से,
हर परिवेश से,
हर परिस्थिति से
और हर व्यक्ति से
कहीं न कहीं
मेल खा ही जाता है !!
और हमारे समाज में
बेचारा राम...
अपना एक पत्नीव्रता का व्रत लिए
उदाहरण बनने से रह जाता है...!!
राम और कृष्ण के माध्यम से प्रेम के दो विभिन्न पहलू को उजागर करती ये शानदार पोस्ट |
जवाब देंहटाएंab kise sahi mane samjh me nahi aata...
जवाब देंहटाएंek sikke ke do pahlu, isse jyada kya ka dun..
jai hind jai bharat
सच में राधा और राम का अनुकरण करने का उदाहरण न दे पाये हम। चिन्तनपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंराम, राम है; सीता, सीता ,
जवाब देंहटाएंकृष्ण, कृष्ण है; राधा, राधा|
सबका अपना स्वयं-भाव है ,
सभी पूर्ण हैं कोई न आधा ||
ब्रह्म पूर्ण है,प्रकृति पूर्ण है ,
पूर्ण से आधा यथा पूर्ण है |
पूर्ण, पूर्ण में जुड़े पूर्ण है ,
सदा पूर्ण वह कभी न आधा ||
वही है सीता, वही है राधा ,
विविधि रूप प्रकृति मर्यादा |
नर-नारी के कर्म जो जैसे ,
बनें राम-सीता,कनु-राधा ||
यक़ीनन विचारणीय...... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता.नई दृष्टि देती कविता.
जवाब देंहटाएंआबिदा परवीन जी का गाया एक सूफ़ी कलाम याद आ गया:
जवाब देंहटाएं"अरे लोगों तुम्हारा क्या,
मैं जानूँ मेरा खुदा जाने!"
सहूलियत अपनी जरुरत के हिसाब से ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही कटु सत्य प्रस्तुत किया है आपने अपनी कविता में.
जवाब देंहटाएंmale chauvinism हमारे समाज का एक और घिनौना चेहरा है.
लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो सोचते हैं,
"मैं राम नहीं हूँ फिर क्यों उम्मीद करूं सीता की,
कोई इंसानों में ढूंढे क्यों क्यों पावनता गंगा की.
मुझे नहीं पूछनी तुमसे बीती बातें,
कैसे भी गुजारी हो तुमने अपनी रातें."