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सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

मोहरे ........



 


कुछ लोग जिंदगी को शतरंज की तरह खेलते हैं
जीवन की हर परिस्थिति और घटना को,
यहाँ तक की अपनी भावनाओं और एहसासों को
और कभी भाग्य और भगवान् को भी  
गोटियों की जगह मनचाहे रूप से रखते हैं.
कभी-कभी.....
अपने रिश्तों और संबंधों को भी
कभी प्यादे तो कभी सैनिक         
और कभी घोड़े और वजीर बना डालते हैं,
लेकिन चालें राजा की तरह खुद  चलते हैं !!
सारा खेल उनका ...
सारी चालें उनकी सोची-समझी,
फिर अचानक क्या हो गया....??
गर सोची-समझी चालें  
उनके हिसाब से सही   बैठ पाईं तो....
तो दूसरा दोषी कौन और क्यों ??
सारे प्यादे,घोड़े,सैनिक   
सब के सब तो उसी के थे ....
उसी ने अपनी मनचाही जगह पर
फिट भी किये थे,
और तो और ...
पासा भी तो उसने अपने हिसाब से फेंका था,
बाकी दूसरा खिलाड़ी तो मूक दर्शक ही था .
दोनों  ही चालें खुद उसकी थीं ...
सोची ,समझी,“तयशुदा चालें”....
फिर सारा दोष दूसरों पर क्यूँ डालें ?
एक साथ सारी  ही चालें गलत हो ,
वह भी उसी के खेल में
तो खुद को देखे  
और खुद  आंकलन करे !!
खेल में गोटियाँ स्वयं नहीं चलती
चलाई  जाती  हैं.
लेकिन जब इंसान हो गोटियों की जगह तो
कभी  कभी तो जीवंत हो उठेगा
तो दोष बादशाहत का है
जिसने इंसानी रिश्तों को
शामिल किया अपने खेल में  
या उन प्यादों और सैनिकों का है?
सब के सब एक साथ 
गलत जगह पर खुद से नहीं जा बैठते हैं
 ही ये उनकी सोची-समझी चाल है!
ये तो खेलने वाला जाने  
जो अपनी बादशाहियत को बचाने के लिए
कुछ भी करने को तैयार है
या  फिर  भाग्य  का  खेल   मान  कर
हर  किसी   से  किनारा  करने  को  तैयार  है !!

16 टिप्‍पणियां:

  1. कई बार बादशाह प्यादों से पिटा जाता है , प्यादे मौन हों या जीवंत रिश्ते - सबकी अपनी निश्चित चालें होती हैं ..... विरोध में तो अपने ही हमेशा खड़े होते हैं तो क्या राजा ही हर बार गलत होता है... कई बार राजा की अति उदारता भी उसके आगे प्रश्नचिन्ह खड़ी कर जाती है ! परिस्थितियाँ शतरंज बन जाती हैं और मजबूरियां चालें ....

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  2. वाजपेयी जी याद आ गए,
    चौराहे पर लुटता चीर
    प्यादे से पिट गया वजीर..
    चालू आखिरी बजी या चोर विरक्ति रचाउ मै
    रह कौन से जाऊ मै

    ......................................

    सुन्दर रचना

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  3. सदा......
    सही कहा आपने.....
    कई बार सही चाल न चलने से प्यादों से बादशाह पिट जाता है...!
    फिर इसका दोष किसी और को तो नहीं दिया जा सकता!
    और जहाँ चाल हो वहां उदारता तो नहीं दिखाई देती !!
    हमेशा साथ देने वाले अपने यूँ ही विरोधी नहीं हो जाते...!!
    परिस्थितियां,मजबूरियाँ जिंदगी में आती ही रहती हैं...खुद के बचाव
    के लिए उन्हें मोहरा बनाना न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता...
    गलत या सही...इसका निर्णय खेलनेवाला खुद करे तो शायद कुछ निष्कर्ष निकले....

    प्रश्नचिन्ह यहाँ पर होना चाहिए ??

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  4. जीवन के अनुभव का निचॊड प्रस्तुत कर रही है ,आपकी रचना!मानव हमेशा खेल के खिलाडी की तर्ह कभी हारा कभी जीता! पर यथार्थ शायद कुछ और ही है!

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  5. जीवन की वास्तविकताओं को सामने लती यह रचना बहुत जीवंत बन पड़ी है ...
    आपके आभार मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए

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  6. kabhi kabhi nahi punam jee, jeevan me har vyakti apnee chaalen sahi tareeke se hi chalna chahta hai, aur apne ko wo raja hi samajhta hai, ye to waqt ka takaja hota hai ki adhiktar sakhs haarta hai...chahe parishtithi kuchh bhi ho..:)

    bahut bakhubhi se aapne shatranj ko sabdo me sameta...badhai..!

    aur ek baad, mere blog pe itna pyara comment dene ke liye hardik dhanyawad...aur aapne sach kaha nar-nari dono ke liye ek baat hai, par wo to uss samay, jab main uss poem ko likhne ki koshish kar raha tha to mera sankuchit mann nari pe atak gaya....meree jara bhi aisee ikshha nahi hai ki nariyon ko main kisi bhi tarah kamtar samjhun...:)

    sayad aap samajh payengi..:)

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  7. मुकेशजी....

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!!
    आपकी साफगोई की दाद देती हूँ....
    शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो इतनी उदारता दिखाए.....!!
    मेरी बात से ये मत सोचियेगा की मैं किसी वर्ग विशेष का पक्ष ले रही हूँ....या फिर आप पुरुष हैं और एक नारी होने के नाते आपका विरोध करना मेरा अधिकार है...
    बस मैंने अपने विचार आपके समक्ष रखे थे और उसे किस तरह लेना है..ये पूरी तरह से आपके हाथ में था..!!
    आपने मेरा मान रखा जो इतनी सहृदयता से मेरी भावनाओं को समझा....!!
    यहाँ मैं इसे आलोचना नहीं कह सकती....!!
    एक मित्र होने के नाते इसे अनुरोध ही कह सकती हूँ और वही किया भी है..!!

    आपको मेरा बार-बार धन्यवाद....!!

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  8. इस दुनिया में हर इन्सान शतरंज की गोटी ही के समान ही तो है दोस्त जिसका पलड़ा जब भरी होता होता है वार करने , चाल चलने से कभी पीछे नहीं हटता चलो छोड़ो इन बातों कों आपने रचना बहुत खुबसूरत दिल के सारे अरमानों को शतरंज के इस मैदान में बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है |
    बहुत खुबसूरत रचना |

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  9. सुन्दर भाव,सुन्दर शब्द रचना.

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  10. ज़िंदगी शतरंज की बिसात है ..और सब मोहरे अपने हिसाब से चाल चलते हैं ..कभी हारते हैं कभी जीतते हैं ...कभी कभी कोई प्यादा चलते चलते वजीर ..हाथी घोड़ा सब बन जाते हैं ..और बादशाह तो बेबस स मोहरा नज़र आता है ...लेकिन असल ज़िंदगी में जिसकी चाल चल गयी वही बादशाह ...

    अच्छी प्रस्तुति ...

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  11. बहुत खूब पूनम जी......हैट्स ऑफ

    शतरंज को किस तरह जीवन में पिरो दिया है आपने.....लाजवाब |

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