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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

दूसरे  की जान बचाने  के  लिए
 बोला गया झूठ-
पुण्य हो जाता है,
 और  खुद  को  बचाने के  लिए
 बोला गया  झूठ भी
पाप  हो जाता  है.
 लेकिन -
 इसका  एहसास कोई करे  भी  तो  कैसे?
 वह  तो  इसी  सोच में है  कि
 खुद तो बच   जाये,
भले   ही दूसरा सूली  पर चढ़ा  दिया  जाये--
 भले  ही खुद को  बचाने के लिए
 उसे कितने ही झूठ  बोलने  पड़ें..
पर कोई  है....
 जो  सब  देख रहा  है,
हर झूठ  -सच का  हिसाब-
हमें  बिना  बताये  रख रहा  है.
 उसे  किसी की  गवाही की ज़रुरत  नहीं  पड़ती,
उसके  लिए दोस्ती और  रिश्तों की-
कोई  अहमियत  नहीं होती..
 बस ,इनसान  के मन में
क्या  चल रहा   है?
 वो  जानता  है....
वो  सब जानता है......


२ जनवरी, 2010

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।

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  2. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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