भाषा कोई भी हो..
उदासी छुपाये नहीं छुपती,
और पराजित चेहरा..
लाख रोशनी के बाद भी
बुझा सा ही दीखता है...!
सपनों का अस्तित्व नकारना..
न तुम्हारे बस में है,
और न मेरे...!
कोई भी शक्ति कारगर न होगी प्रिये...!
आँखों में उतर आती है..
माथे की बेचैनी,
और आँखें पढ़ना...
बहुत ही आसान होता है...!
चलना तो होगा ही..
चाहे कोई भी मार्ग हो...!
पगडंडी बनाने वाले भी..
ख़्वाब में राजमार्ग की चाह रखते हैं..!
हाँ, मगर नदियाँ तो...
राजमार्गों के नज़दीक से गुज़रती ही नहीं..!
कोई भी नहीं गुजरती है...
राजमार्गों के नज़दीक से....!
उनका प्रेम...
कच्ची और टेढ़ी मेढ़ी...
पगडंडियों से ही रहा है सदा..!
प्यासे सपनों की खेती..
दिल के बंजर टुकड़े पर नहीं होती,
उसके लिए मन का...
गीला होना ज़रूरी होता है...!
तो चलो उस रास्ते पर...
जो किसी भी हद तक न पहुँचे...
क्यूँ कि मन का कोई छोर नहीं होता...!
***पूनम***
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंप्यासे सपनों की खेतीदिल के बंजर टुकड़े पर नहीं होती -- उसके लिए मन का गिला होना जरूरी है -- वाह पूनम जी - बहुत ही अनमोल शब्द और अनुपम रचना !!!!!!!!
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