गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

महकायेंगे दामन तेरा...गुलाब जैसे हों....





चिंगारी को हवा दे कोई.....ज़ज्बात ऐसे हों...
रौशन हो दिल किसी का...एहसास ऐसे हों...!


तुम जल के भी जलते रहे...रौशन न हो सके...
हम मिट के भी रौशन हुए...माहताब जैसे हों...!!


आये थे तेरी बज़्म में....कुछ सुनने सुनाने...
मिट ही गए हम तुझ पे यूँ...मुमताज़ जैसे हों...!


खुशबू-ए-गुल की कभी...कम नहीं होगी...
महकायेंगे दामन तेरा...गुलाब जैसे हों....!



संध्या...७.५०
२८/०२/२०१३



 

7 टिप्‍पणियां:

  1. गुलाब के लिये सोच बढिया है

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  2. वाह बहुत खूब दी........कभी कभी हमारे ब्लॉग के लिए भी वक़्त निकल करो ।

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  3. tum jal ke bhi jalte rahe... raushan na ho sake......... ati sundar

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