रविवार, 16 जनवरी 2011

कई साल पहले एक बसंती बयार मेरे जीवन में आई
और मुझे बाहर-भीतर सब जगह महका गई.....!!
आज भी उसकी खुशबू है मेरे आस-पास !!
एहसास है उसका मेरे साथ...
हर समय....हर जगह !!
कभी किसी रूप में......कभी किसी रूप में !
जब भी आँखें बंद करूँ महसूस कर लेती हूँ उसे !!
ये कुछ भावनाएं हैं जो शब्दों में ढल गईं....
लम्बा समय बीत गया.
१९८२-८३ में लिखी हुई...
ये मेरे ज़ेहन में अभी भी ताज़ा हैं !!
पुराने  पन्नों  से --

तुम्हारे लिए..........
            मेरी हर नज़्म
तुमसे-
तुम्ही से तो
शुरू होती है.
कभी दूर जाओ
मेरे ख्यालों से
तो कुछ और भी
लिखने की सोंचूं मैं !!!!!

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तुम्हारे नाम के साथ ही-
जुड़ी हैं चंद यादें !!
जो हमेशा ही
मेरे मन को
हौले से छू कर
कुछ  कहती है.
और मैं ?
मैं यूं ही चुपचाप...
सुनती रहती  हूँ उनकी आवाजें...
जाने कितनी देर.... 
यूं ही बठी रहती हूँ में,
इसी भ्रम में--
कि जैसे तुम कुछ कह रहे हो
चुपके से मेरे कानों में!!!! 

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कुछ कहो प्रिय !!!
                   कौन हो तुम??
दे व्यथित मन को अपरिमित-
                  सांत्वना तुम हो गए गुम!!!

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जब याद करती हूँ तुम्हें-
तो...
बेचैन हो उठती हूँ एकपल को,
जब भूलना चाहती हूँ तुम्हे..
तुम और याद आते हो मुझे !!

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तुम्हारी तस्वीर को
सामने रख कर
कुछ लिखने की
कल्पना करना भी
कितना बड़ा पागलपन है ???
फिर भी--
जी  चाहता है
यही पागलपन करने को भी.....
कभी- कभी !!!!!!!!

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तुम्हें अपने पास
पाने का एहसास भी
 कितना सुखद होता है !!
ये मैंने अब जाना है
जब कि-
तुम ख्यालों में
पास होते हो मेरे !!!

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वे सब छन सपने लगते हैं..
             जो तेरे साथ गुजारे हैं,
वे सब छन अपने लगते हैं..
             जो तुझसे विलग गुजारे हैं.

एक व्याकुलता,बेचैनी सी
             भर जाती मेरे तन-मन में,
जब-जब पाया मैंने तुझको
              अपने सपनों के आँगन में.

पा कर तुमको अपने समीप
              भर आते मेरे नैन प्रिये !!
कुछ पूछो मत तुम,आज सुनो..
              मेरे नैनों के बैन प्रिये !!!

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कभी--
ढलते सूरज के साथ-साथ
गहराती संध्या कि देहरी पर...
हौले-हौले
कदम रखते हुए
तुमसे टकरा गई थी मैं !!
मैं कुछ सकुचाई थी,
पर तुम......
पहले तो चौंके,
फिर अचानक ही-
खिलखिला कर हंस पड़े थे.
वह निर्दोष खिलखिलाहट
अब भी, जब-तब
मेरे कानों में गूँज जाती है,
तब--
ऐसा लगता है मुझे.....
कि जैसे में एक बार फिर
यूँही अनमनी सी चलते-चलते
टकरा गई हूँ तुमसे.....
अचानक ही !!!

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भोर की लाली के साथ..
जीवन में एक किरण चमकी
आशा की.
चहचहाती चिड़ियों ने
एक नया सुर दिया
मेरे संगीत को.
सुगन्धित पवन ने
फूंक दिए प्राण...
मेरे तन-मन में.
और---
रात की सारी व्याकुलता
एकबारगी दूर हो गई
यह सुन कर कि-
तुम आने वाले हो !!!

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कौन आया था जाने
स्वप्न में मुझको जगाने ?
                  
                देखती हूँ स्वप्न जिसके
                जागते-सोते हुए मैं,
                क्यूँ मुझे बेचैन कर वह
                छुप गया मेरे ह्रदय में !!

आँख लगते ही समा चुपके से
मेरी पलक में वह,
और हौले से मुझे छू
क्यूँ लगा मुझको जगाने ??

                आज आए थे तुम्ही,प्रिय !
                स्वप्न में मुझको जगाने !!!

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जब भी कालबेल बजती है
तो---
यही सोचती हूँ मैं..........
कि-
दरवाज़ा मैं खोलूँ
और--
सामने तुम हो !!!

17 टिप्‍पणियां:

  1. aapke 'purane panne'behad khoobsurti ke saath aaj bhi taro-taza hain.

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  2. हर शब्‍द जीवंत सा ...सुन्‍दर शब्‍दों का संगम इस रचना में ।

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  3. यह पुराने पन्ने बहुत जीवंत लगे ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. सुन्‍दर शब्‍दों का संगम....बहुत खूब। सारे नज़्म भावपूर्ण हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. यथार्थमय सुन्दर पोस्ट
    कविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. आज भी अच्छी लग लग रही है ...ये पन्ने ..पूनम जी //

    जवाब देंहटाएं
  7. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना ( मोहरे ) आज मंगलवार 18 -01 -2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html

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  8. punam ji yekse yek badhiya hai.......der tak hame bhi mahaka gai.........

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  9. "कभी दूर जाओ
    मेरे ख्यालों से
    तो कुछ और भी
    लिखने की सोंचूं मैं !!!!!"

    kitna sundar likhti hain aap
    har pankti dil men utarati hai
    bahut hi sundar
    aana safal hua

    badhaayi
    aabhaar

    जवाब देंहटाएं
  10. यादों को इतनी जीवन्तता के साथ ढाला है कि...हर किसी के जेहन में कुछ ऐसी यादें अवश्य उभर आएँगी . आपको हार्दिक शुभकामना इस रचना के लिए .

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  11. यादों के पन्ने पलटते हुए सुन्दर कविता बन गई है .बधाई.

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  12. Behtreen Sabdo ke saath behtreen abhivyakti.....nice
    http://amrendra-shukla.blogspot.com

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  13. अभिव्यक्ति में गहराई भी है संतुलन भी है. निष्ठा भी है समर्पण भी है.
    मेरे तरफ से आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं.

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  14. "मृदुलाजी,सदाजी,सुमनजी,अमृता जी,अम्रेंद्रजी,अरुणजी एवं

    क्रिएटिव मंच के सभी सदस्यगण"



    आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद....

    मेरी रचनाओं पर आपकी अभिव्यक्ति

    मेरा हौसला बढ़ने के लिए सहयोगी रहेगी !!



    "संगीता जी,"

    चर्चामंच पर आपने मुझे शामिल किया..

    ये मेरा सौभाग्य.....



    "कुंवरजी,"

    आपने सराहना मेरे लिए मायने रखती है...

    आपको मेरा धन्यवाद !!!



    "बबनजी.....संजयजी..."

    आप मेरे सहयोगी पाठक दोस्त हैं..

    मेरे ब्लॉग के regular visitor........

    आपका बहुत-बहुत बहुत शुक्रिया....

    जवाब देंहटाएं
  15. पहली बार आपके व्लाग पर आयाऔर बहुत खुबसूरत कविता पढने की मिली सार्थक पोस्ट , बधाई

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  16. puraane pannoN meiN
    dharkte hue kuchh alfaaz
    aaj kaavya ko
    bahut khoobsurti bakhsh rahe haiN ...
    sundar abhvyaktee .

    जवाब देंहटाएं
  17. परिचय शब्दों का , भावनाओं का मलयानिल सा होता है
    ....
    अंत तक पढ़ा ... बस यूँ ही , बहुत सहज, सरल भावनाओं ने बहुत कुछ कहा है पुराने पन्नों से ... ८२ से ८३ तक की बसंती उड़ान की अपनी खासियत होती है , अपनी अदा , अपनी मासूमियत ...

    तुम्हें अपने पास
    पाने का एहसास भी
    कितना सुखद होता है !!
    ये मैंने अब जाना है
    जब कि-
    तुम ख्यालों में
    पास होते हो मेरे !!!
    -----------------------------------------------------

    गहराती संध्या कि देहरी पर...
    हौले-हौले
    कदम रखते हुए
    तुमसे टकरा गई थी मैं !!
    मैं कुछ सकुचाई थी,
    पर तुम......
    पहले तो चौंके,
    फिर अचानक ही-
    खिलखिला कर हंस पड़े थे.
    वह निर्दोष खिलखिलाहट
    अब भी, जब-तब
    मेरे कानों में गूँज जाती है,
    ....................................................................
    पुरवा के झोंके सी उम्र डायरी के पन्नों से बस यूँ हीं तो नहीं निकली , आज भी कोई पुरवा उसकी जेहन में है - बहुत ही अच्छा लगा यह परिचय !

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