शनिवार, 15 जनवरी 2011

मोहरे--

     chess

ज़िन्दगी की बिसात पर
मोहरे इंसानों के चलता है कोई
कभी रिश्तों के रूप में,
कभी दोस्तों के रूप में,
कभी भावनाओं के रूप में,
तो कभी भाग्य के रूप में....
और भी न जाने
किन-किन रूपों को इस्तेमाल करने की कोशिश करता है
अपनी ही बात को सही साबित  करने के लिए
न जाने कौन-कौन सी
चालें चलता है शकुनी की तरह..
साम,दाम, दंड,भेद
सब के सब पासे की तरह
हाथों से रगड़ कर
फेंक देता है एकबारगी.....
लेकिन क्या होगा इससे?
जीत भी गया तो क्या पा लेगा वह??
जिसका सब कुछ
दांव पर लगाने की कोशिश में लगा है
उसे गर हरा भी दिया तो
क्या वह अपनी जीत का जश्न मना पायेगा?

16 टिप्‍पणियां:

  1. क्या वह अपनी जीत का जश्न मना पायेगा?
    सन्देश देती रचना .....

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  2. mridulaji avam amarjeetji....
    dhanyawaad mere blog per aane ke liye...

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  3. पूनम जी
    नमस्कार
    उसे गर हरा भी दिया तो
    क्या वह अपनी जीत का जश्न मना पायेगा?
    .........सन्देश देती रचना

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  4. आपने तो हमारे दिल कि बात कह दी दोस्त जिंदगी कुछ एसी ही है और हर कोई अपनी तरह सेभुनाने मै लगा रहता है किसी को किसी के एहसासों कि कोई कदर नहीं !

    बहुत सुन्दर एहसासों से भरी रचना !

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  5. ज़िंदगी की बिसात पर यूँ ही मोहरे चलते हैं ..खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  6. सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
    भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
    बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

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  7. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html

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  8. बहुत सुंदर और प्रभावी भावभिव्यक्ति.....

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  9. वाह! क्या बात है! बेहतरीन रचना!

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  10. बहुत सुन्दर सन्देश देती प्रभावशाली रचना।

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  11. बहुत सुन्दर ...
    प्रभावशाली ....
    प्रेरणाप्रद ..........रचना |

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  12. बहुत अच्छी रचना है पूनम जी...
    इंसान जानता है कि वो एक मोहरे से अधिक कुछ नहीं, फिर भी हर सफ़लता का श्रेय खुद को, और विफ़लता का दोष तकदीर को देता रहा है.

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  13. शब्दों और भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पिरोया है

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  14. सही कहा पूनम जी, ज़िंदगी की बिसात पर इंसान मोहरा ही तो है. सुन्दर सारगर्भित रचना..

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