शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

कतरा-कतरा.........




पतंगे की फितरत....
जहाँ भी कोई शमा दिखी 
बस-  
फ़ना हों गया,  
और शमा की फितरत.... 
कतरा-कतरा पिघलते रहना-  
सुबह के इंतज़ार में.
शायद इसीलिये-  
तुम अन्दर-अन्दर  
सुलग रहे हो 
एक शमा की लौ में.
और मैं-
सुबह के इंतज़ार में
कतरा-कतरा पिघल रही हूँ !!!!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब पूनम जी ....एक खुबसूरत काव्य

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  2. punam ji bahut sunder rachna hai.
    yek achhi bloger dost se parichaye huva.mere blog par ane ka aabhar.........

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  3. आदरणीय पूनम जी
    नमस्कार !
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  4. sumanji,thanks!!!mere blog per aane ke liye..shukriya...
    babanji avam sanjayji!! aap ka bahut bahut shukriya meri rachnaon per aapka vichaar sabse pahle aata hai...thanx again....

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