बुधवार, 25 जुलाई 2018

कुछ तुम कहो....कुछ हम कहें...





भाषा कोई भी हो..
उदासी छुपाये नहीं छुपती,
और पराजित चेहरा..
लाख रोशनी के बाद भी
बुझा सा ही दीखता है...!

सपनों का अस्तित्व नकारना..
न तुम्हारे बस में है,
और न मेरे...!
कोई भी शक्ति कारगर न होगी प्रिये...!

आँखों में उतर आती है..
माथे की बेचैनी,
और आँखें पढ़ना...
बहुत ही आसान होता है...!

चलना तो होगा ही..
चाहे कोई भी मार्ग हो...!
पगडंडी बनाने वाले भी..
ख़्वाब में राजमार्ग की चाह रखते हैं..!

हाँ, मगर नदियाँ तो...
राजमार्गों के नज़दीक से गुज़रती ही नहीं..!
कोई भी नहीं गुजरती है... 
राजमार्गों के नज़दीक से....!
उनका प्रेम...
कच्ची और टेढ़ी मेढ़ी...
पगडंडियों से ही रहा है सदा..!

प्यासे सपनों की खेती..
दिल के बंजर टुकड़े पर नहीं होती,
उसके लिए मन का...
गीला होना ज़रूरी होता है...!

तो चलो उस रास्ते पर...
जो किसी भी हद तक न पहुँचे...
क्यूँ कि मन का कोई छोर नहीं होता...!

***पूनम***


बुधवार, 4 जुलाई 2018

**प्यार को चाहिए क्या....**




आप से अब कोई गिला भी नहीं
और कोई हमें मिला भी नहीं..!

देर तक जागती रही ऑंखें
ख्वाब का कोई सिलसिला भी नहीं..!

हमने बदली हैं इस तरह राहें
साथ में कोई काफिला भी नहीं..!

इस तरह उसने फेर ली नज़रें
दिल जो मुरझाया फिर खिला भी नहीँ..!

हमसे मिलने की भी नहीं फुर्सत...
आप इतने तो मुब्तिला भी नहीं..!

याद करना पड़ेगा 'पूनम' को...
आपसे अब मुकाबिला भी नहीं..!

***पूनम***