गुरुवार, 7 जुलाई 2016

आज फिर जम के प्यार बरसा है






आज फिर जम के प्यार बरसा है...
इसलिए मेरा यार बहका है...!

फूल गुलशन में इस तरह हैं खिले...
आज हर एक जिस्म महका है..!

बात बनती हुई नहीं दिखती...
आज उसने नकाब पलटा है..!

सबकी नज़रें बदल गयी हैं यूँ...
इस जमाने का दौर बदला है...!

चाँद के पहलु चाँदनी आई...
चार सू एक शोला दहका है...!

हमने अब तक तुझे नहीं देखा...
फिर भी तू आस पास रहता है..!

हमने चाहा कि रोक लें इसको...
बन के दरिया सा इश्क़ बहता है..!


***पूनम***



2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-07-2016) को "इस जहाँ में मुझ सा दीवाना नहीं" (चर्चा अंक-2399) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपका हार्दिक आभार आदरणीय रूपचन्द्र जी.....

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