सोमवार, 19 जनवरी 2015

इश्क़ की रस्म....





शाम कुछ इस तरह से आई है
ज़िन्दगी जैसे गुनगुनाई है ...!

तीरगी दूर छुप के बैठ गई...

रात दुल्हन सी झिलमिलाई है...!

साथ वो अब मेरे नहीं आता...

उसकी यादों से आशनाई है...!

वो मुझे याद कर परीशां हो...

इश्क़ की रस्म यूँ निभायी है...!

रात 'पूनम' की जब हुई रौशन...

चाँदनी हुस्न में नहाई है...!



19/01/2015

उदयपुर


7 टिप्‍पणियां:

  1. कल 21/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया यशवंत.....
      'हलचल' में साथी बनाने के लिए...

      हटाएं
    2. शुक्रिया यशवंत.....
      'हलचल' में साथी बनाने के लिए...

      हटाएं
    3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  2. खट्टी-मीठी यादों से भरे साल के गुजरने पर दुख तो होता है पर नया साल कई उमंग और उत्साह के साथ दस्तक देगा ऐसी उम्मीद है। नवर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    कभी फुर्सत मिले तो ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब ...आखरी शेर तो कमाल कर रहा है ... बहुत उम्दा ...

    जवाब देंहटाएं