रविवार, 6 अप्रैल 2014

तलाश....







इस ज़िंदगी में हमें है तलाश....
किसकी....?
और क्यूँ....?
यहाँ क्या है हमारा...?
जो  है हमारे पास...
क्या वो हमें संतोष देने के लिए पर्याप्त नहीं...??
ज़िंदगी भर हमें रहती है तलाश....
प्रेम की...अपनापन की..
किसी ऐसे की तलाश... 
जो हमारी भावनाओं को समझ सके...
हमारी संवेदनाओं को..
और वेदनाओं को समझे...
हमारी शारीरिक ज़रूरतों की पूर्ति कर सके...!
और ये ज़िंदगी बस इसी के इर्द गिर्द 
घूम कर खत्म हो जाती है...!
हम खोजते हैं इन्हें...
अपने साथ रहने वालों में...
नहीं तो घर से बाहर किसी अन्य में...!
लेकिन नतीजा नदारत...!
कभी कहीं एक मिलता है तो 
दूसरा तिरोहित हो जाता है..! 
और प्रेम....
प्रेम तो शायद ही मिलता हो कहीं...!!
कहना मुश्किल है कि 
ये होता भी है या नहीं..!
हाँ....साथ रहते रहते... 
कभी कभी कुछ क्षण के लिए 
झलक भर दिखाई देता है 
फिर इस ज़िंदगी के चूल्हे में 
रोटी कपड़ा मकान की बलि चढ़ जाता है..!
शायद इसीलिए.. 
लैला...मजनू 
शीरीं...फरहाद 
रोमियो...जूलियट का प्रेम अमर है 
क्यूँ कि वो इस चिता पर 
अपने प्रेम की बलि चढ़ाने से बच गए...!
काश कि उन्हें भी हमारी तरह ही ज़िंदगी मिल पाती...! 
फिर ये दुनिया देखती कि 
उनकी प्रेम की भावना... 
कितने दिन तक बच पाती....!!




11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 08 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर चित्र और रचना दोनों ही |

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  3. परखना मत परखने से कोई रिश्ता नहीं रहता...ये सच है कि प्रेम कथाओं में वे प्रेम के ख़त्म होने से पहले ही निपट गए...वर्ना कहानी शादी के साइड इफ़ेक्ट पर ख़त्म होती...

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    1. Vaanbhatt जी ...सही कहा आपने....!
      मुझे तो लगता है कि जिनकी जिनकी प्रेम कहानी अधूरी रह गयी है नियति उन्हें एक बार उम्र भर साथ साथ रहने का मौका अवश्य दे...और उम्र के अंतिम पड़ाव में उनका बयां दर्ज कराया जाये...जो कि प्रेम के सन्देश के रूप में समाज और संसार के सामने आये...! उनके अधूरे ख्वाबों की पूर्ति भी हो जायेगी और जीवन की सच्चाई से भी रु ब रु हो जायेंगे सब... :)

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  4. prem karna jitna aasan hota hai use nibhana utna hi mushkil hota hai par sachhai yahi hai ki prem kabhi marta nahi wastav me wo prem hi ho aakasharn nahi .....sundar rachna ...

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  5. 'पागल रे वह मिलता है कब,उसको तो देते ही हैं सब'
    -एक उद्धरण .

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  6. अपने जैसा ढूँढ़े कोई, सुख की आशा।

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  7. प्रेम तो हृदय की वस्तु है..संसार की नहीं

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  8. एक बार फिर ...कल 12/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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