शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

हर इक लम्हा तेरे आने का नज़रों में उतर जाये....







हर इक लम्हा तेरे आने का नज़रों में उतर जाये.. 
गुजरता है अगर ये वक्त तो यूँ ही गुजर जाए...!

अगर मैं मूंद लूँ आँखें तो तेरे ख्वाब आते हैं...
जो खुल जाएँ मेरी ऑंखें तेरा चेहरा संवर जाए...!

मेरा दिल जानता है ये तुझे मिलने की चाहत है...
मगर जब वक्त आता है तू मिलने से मुकर जाये...!

यही ख्वाहिश अब मेरी जिंदगी भर की कमाई है...
के जब तू पास हो मेरे हर इक लम्हा ठहर जाये...!

फलक पर चाँद तारे अब मुझे इक साथ दिखते हैं...
मुझे तू ही नज़र आये...जहाँ तक ये नज़र जाए...!


२४/०४/२०१४
 


गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

हमारी बज़्म में शम्मा जलाने आ गए हैं वो...






हमारी बज्म में शम्मा जलाने आ गए हैं वो...
नए परवाने आ जाएँ...बुलाने आ गए हैं वो...

बहुत शातिर है कातिल वो निशां अपने न छोड़ेगा...
मगर हम भी नहीं हैं कम...बताने आ गए हैं वो... !

किनारे पर खड़े हो करके वो आवाज़ देते हैं...
बड़े अंदाज़ से नैय्या डुबाने आ गए हैं वो...

मेरे ख्वाबों खयालों में कभी चुपके से आ कर के
मेरी आँखों से नींदों को चुराने आ गए हैं वो...!

न जाने कब से था मायूस दिल का बागबां दिल मेरा 
गुलो गुलज़ार गुलशन को खिलाने आ गए हैं वो...



१७/०४/२०१४



मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

तुम्हें ये हक दिया किसने दीयों के दिल दुखाने का...








चला है सिलसिला कैसा ये रातों को मनाने का 
तुम्हें ये हक दिया किसने दीयों के दिल दुखाने का...!!

इरादा छोड़िये अपनी हदों से दूर जाने का 
जमाना है ज़माने की निगाहों में न आने का...!!

कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो 
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का...!!

निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का...!!

ये मैं ही था बचा कर खुद को ले आया किनारे तक
समंदर ने बहुत मौका दिया था डूब जाने का...!!





           *वासिम बरेलवी साहेब*

न जाने क्यूँ ये गज़ल आज बार बार याद आ रही है...
तो सोचा क्यूँ न साझा कर लूँ आप सबके साथ......!


शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

ख्वाब वो तो नहीं जो दिया आपने....





ख्वाब वो तो नहीं जो दिया आपने...
मेरी नींदों से ही तो लिया आपने...!!

मेरी पलकों में था जो छुपा ही हुआ...
बस उसी ख्वाब को था जिया आपने...!!

हम समझते थे जिसको है हमदम मिरा...
वो भरम आ के तोड़ा मियां आपने...!!

थे बचाए हुए आँधियों से जिसे...
अब बुझा ही दिया वो दिया आपने...!!

दिल की चादर फटी की फटी रह गयी...
उसको अब तक मियां न सिया आपने...!!

रात पूनम की फिर से अमावस हुई...
कर दिया  मेरा खाली हिया आपने....!!


***पूनम***
१०/०४/२०१४ 



रविवार, 6 अप्रैल 2014

तलाश....







इस ज़िंदगी में हमें है तलाश....
किसकी....?
और क्यूँ....?
यहाँ क्या है हमारा...?
जो  है हमारे पास...
क्या वो हमें संतोष देने के लिए पर्याप्त नहीं...??
ज़िंदगी भर हमें रहती है तलाश....
प्रेम की...अपनापन की..
किसी ऐसे की तलाश... 
जो हमारी भावनाओं को समझ सके...
हमारी संवेदनाओं को..
और वेदनाओं को समझे...
हमारी शारीरिक ज़रूरतों की पूर्ति कर सके...!
और ये ज़िंदगी बस इसी के इर्द गिर्द 
घूम कर खत्म हो जाती है...!
हम खोजते हैं इन्हें...
अपने साथ रहने वालों में...
नहीं तो घर से बाहर किसी अन्य में...!
लेकिन नतीजा नदारत...!
कभी कहीं एक मिलता है तो 
दूसरा तिरोहित हो जाता है..! 
और प्रेम....
प्रेम तो शायद ही मिलता हो कहीं...!!
कहना मुश्किल है कि 
ये होता भी है या नहीं..!
हाँ....साथ रहते रहते... 
कभी कभी कुछ क्षण के लिए 
झलक भर दिखाई देता है 
फिर इस ज़िंदगी के चूल्हे में 
रोटी कपड़ा मकान की बलि चढ़ जाता है..!
शायद इसीलिए.. 
लैला...मजनू 
शीरीं...फरहाद 
रोमियो...जूलियट का प्रेम अमर है 
क्यूँ कि वो इस चिता पर 
अपने प्रेम की बलि चढ़ाने से बच गए...!
काश कि उन्हें भी हमारी तरह ही ज़िंदगी मिल पाती...! 
फिर ये दुनिया देखती कि 
उनकी प्रेम की भावना... 
कितने दिन तक बच पाती....!!