शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

खरामा खरामा......











चले आ रहे हैं खरामा खरामा 
वो अपनी नज़र को झुकाए झुकाए...!

नहीं हमने देखी कभी ऐसी शोखी..
है गिरती नजर से झुकाए झुकाए...!

कभी छोड़ देते हैं दिल पर निशानी
परेशां भी खुद किस तरह से मिटाए...!

वो बैठे हैं महफ़िल में कर के किनारा..
खुदारा कोई उनको न देख पाए...!









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