शनिवार, 5 जनवरी 2013

कतरा कतरा




कतरा कतरा 
वो वक्त बीत गया 
जो कभी था तुम्हारे साथ...
कतरा कतरा 
वो अल्फाज़ भी सिमट गये  
जो दबे थे मेरे सीने में !
आज हमारे सारे एहसास 
सहमे, सिकुड़े...
बेचारे से....
अपने ही एहसास को 
महसूस करने के लिए..
औरों का मुंह ताकते हैं !
भले ही तुम इसे न मानो
लेकिन तुम्हारे चेहरे की 
झेंपती हंसी सब कह देती है...
तुम्हारा जोर से हंसना 
तुम्हारे दर्द का एहसास दिला देता है...!
कुछ वक्त चुराया था तुम्हारे लिए...
इस जिंदगी से मैंने...
न जाने कब का मुट्ठी से फिसल कर 
कहीं दूर जा गिरा है ! 
कुछ वक्त ने और कुछ तुमने 
और कुछ मैंने.... 
बदल डाला है सब कुछ  !!
अब तुम्हें देने को मेरे पास कुछ नहीं है...
दोनों हथेली खाली है मेरी 
क्यूँ कि....
मेरे पास आज खोने को भी कुछ नहीं है....!! 



०५/०१/२०१३



7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुब लिख दिए हो ...बधाई स्वीकारें

    recent poem : मायने बदल गऐ

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  2. सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

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  3. शानदार, बेहतरीन............दी जज़्बात पर भी आयें।

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