शनिवार, 3 नवंबर 2012

रिश्ते.....







                                                         तन की आवश्यकता तो कहीं भी पूरी की जा सकती है...किन्तु इंसान भावनात्मक तौर पर जुड़ना चाहता है...वर्ना हर रिश्ता समझौता है..! नज़दीक रह कर भी आदमी आदमी को नहीं पहचानता...हाथ मिलते हैं....शरीर भी मिलते हैं......पर दिल.....???
दिल नहीं मिलते !
                                                अगर फूल में रंगत हो, कोमलता हो, ताज़गी हो लेकिन खुशबू न हो...तो वो फूल कैसा....????
                     संबंधों में मधुरता और एक-दुसरे के लिए सम्मान ज़रूरी है तभी सम्बन्ध फलते फूलते हैं और ताउम्र चलते हैं...! झूठ, दंभ, दिखावा, बड़बोलापन और अपशब्दता किसी भी सम्बन्ध को बेवक्त और बेमौत मारने के लिए काफी है....!!



12 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा ...लेकिन फिर भी यह रिश्तों के बीच सर उठाकर खड़े हो जाते हैं ...और कितनी कितनी मौतें मारते हैं ....:((

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  2. बिल्कुल सही आकलन किया है।

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  3. मन भर आवे,
    बस इतना सा सुख दे दो प्रभु।

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  4. पूर्ण सहमती आपसे..... सटीक विचार साझा किये हैं

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  5. .

    इंसान भावनात्मक तौर पर जुड़ना चाहता है...वर्ना हर रिश्ता समझौता है..!
    इसी लिए तो अक्सर ब्लॉग और फेसबुक के मित्रों से बहुत नज़दीकी महसूस होती है…
    भावनात्मक रिश्तों का बहुत महत्व है …

    ग़लत तो नहीं कह रहा पूनम जी ?

    मन तक पहुंचती पोस्ट क लिए आभार !
    हालांकि पढ़ते-पढ़ते मन उदास हो रहा है …

    रफ़ी साहब का एक गीत याद आ गया -
    ख़ुशबू हूं मैं फूल नहीं हूं जो मुरझाऊंगा…

    ख़ुश रहिए प्लीज़ !
    दीवाली की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. राजेन्द्र जी...
      काफी हद तक आपकी बात सही है...!
      शायद ये इसलिए भी कि यहाँ हम अपनी ऐसी भावनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकते हैं जिन्हें रिश्तों में कोई सुनने के लिए तैयार नहीं...सम्मान मिलना तो दूर की बात है ! काश कि रिश्तों में भी यही खुलापन हो जाये जहाँ एक-दूसरे के सामने अपनी बात,अपनी भावनाओं को व्यक्त किया जा सके !

      आपको और आपके परिवार को दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं.....!

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  6. भावनात्मक रूप से समझना जरुरी होता है इंसान को ....शरीरों से नहीं ...लेकिन आज तक मुझे कोई ऐसा सशक्त उदाहरण नहीं मिल पाया कि इंसान को सिर्फ भावनात्मक रूप से ही समझा गया हो ...अगर ऐसा होता तो यह फिर जाति - पाति , ऊंच नीच के भेदभाव नहीं होते ...!

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  7. जबकि सभी भौतिक चीजों को सहेजना जानते हैं लेकिन मानवीय भावों से अछूते रह जाते हैं..

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  8. "अगर फूल में रंगत हो, कोमलता हो, ताज़गी हो लेकिन खुशबू न हो...तो वो फूल कैसा....????"

    ----अजी, बहुत से फूल बिना रंग के बिना सुगंध के भी होते हैं .....परंतु वे अपना मूल धर्म( जीवन व विकास भाव ) तो निभाते ही हैं ..चाहे किसी देवता पर न् चढते हों या सुन्दरी के केशों की शोभा न् बनते हों....
    -- शरीर अर्थात आवरण जानने /होने के पश्चात ही भावना/ मन की बात आती है ..तन जुड़े बिना भावना कैसे जुड़ेगी ...अतः तन तो जुडना आवश्यक है ही उसकी आवश्यकता यूँहीं कहीं भी पूरी नहीं की जा सकती ...जो आप कह रही हैं वह सिर्फ मज़बूरी होती है ...दिखावे के लिए आवश्यकता तो अधूरी ही रहती है ...तन और मन दोनों के समन्वय से ही आवश्यकता पूरी हो पाती है...हाँ कर्तव्य में कुछ भी न्योछावर किया जा सकता है ..तन की आवश्यकता भी ..भाव की भी ...

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    1. आपकी अंतिम पंक्ति मेरे भाव की पुष्टि करती है :)

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