सोमवार, 17 सितंबर 2012

राज़.......जो अब राज़ न रहा....








कुछ राज़ कहे हमने...उनसे यूँ अलहदा..
निकले तो साथ थे मगर राहें  हुई जुदा !!

कुछ राह वो थे भूले कुछ हम भी खो गए
नज़रें तो दूर तक गयीं मंजिल हुई जुदा !!

तेरी  निगेहबानी  का  क्या  शुक्रिया करूँ 
रुसवाइयां जो तूने दीं वो भी थीं अलहदा !!

माना ये राह-ए-जिंदगी सिखलाती है सबक
तूने जो दिया है सबक वो सबसे अलहदा !!

हमने किया यकीन था तुझपे बहुत मगर
न तुझको ही यकीन रहा खुद पे ,या खुदा !!








7 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह -सुबह . एक अछि रचना पढने को मिली .. रहे को राहे कर लें

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    1. शुक्रिया बबन जी...
      कभी कभी गलती से मिस्टेक हो जाती है....:))

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