गुरुवार, 26 अप्रैल 2012
सोमवार, 23 अप्रैल 2012
नकाब.......
हमारे अपने ही लोग,
हमारे बहुत बहुत अपने...
बड़े-बड़े झूठों को
लिए हुए शान से
एक लम्बी सी
मुस्कान के साथ
हमारे ईर्द-गिर्द ही
मिल जाते हैं,
मुस्कान के साथ
हमारे ईर्द-गिर्द ही
मिल जाते हैं,
जो हमारे सामने ही
अपना-अपना झूठ...
बड़ी सफाई से पेश कर
बहुत शान के साथ
हमें और दूसरों को
खुश कर देते हैं !
खुश कर देते हैं !
और हम सब
उनके झूठ को
उनके झूठ को
समझते हुए भी
चुपचाप स्वीकार
कर लेते हैं,
कर लेते हैं,
जबकि सच्चाई क्या है....?
हमें भी पता होती है !
हमें भी पता होती है !
और सच्चाई
कितनी चोट पहुंचाती है...
ये हम भी जानते हैं !
हम नहीं चाहते कि
वो इस दौर से गुजरें...
किसी तरह की शर्मिंदगी
दूसरों के बीच महसूस करें ..!
किसी तरह की शर्मिंदगी
दूसरों के बीच महसूस करें ..!
इस तरह सच्चाई पर
झूठ की नकाब पड़ी ही रहती है !
और....
सच्चाई इस नकाब की
सच्चाई इस नकाब की
ओट से झूठ को सच होता हुए
चुपचाप देखती रहती है !
क्यूँ कि
झूठ का अपना
कोई अस्तित्व नहीं होता..
उसे सामने आने के लिए
हमेशा सच का लिबास
पहन कर ही खुद को
दूसरों के सामने
पेश करना होता है.....!
पेश करना होता है.....!
मगर कुछ लोग
इन बातों से
इन बातों से
खुद को बड़ा
अनजान सा दिखाते हैं....
और हम भी उतने ही अनजान से,
नादाँ से उनके इस झूठ को
सच मान लेते हैं !
इस तरह 'वो सही हैं '
उनका भरम बना रह जाता है !
इस तरह 'वो सही हैं '
उनका भरम बना रह जाता है !
लेकिन इससे वो...
कुछ सीखते भी नहीं,
और इस तरह
उनका झूठ सबके सामने
सच तो हो जाता है ...
कुछ सीखते भी नहीं,
और इस तरह
उनका झूठ सबके सामने
सच तो हो जाता है ...
लेकिन कब तक ....?????
बुधवार, 11 अप्रैल 2012
'जावेद अख्तर' साहेब की ग़ज़ल........
कुछ दिनों पहले 'जावेद अख्तर' साहेब की ये ग़ज़ल सुनी थी....
आज के परिवेश में एकदम सही सी उतरती ये ग़ज़ल.....
आपकी नज़र.......
बरसों की रस्मो-राह थी, एक रोज़ उसने तोड़ दी
होशियार हम भी कम नहीं,उम्मीद हमने छोड़ दी !
गिरहें पड़ी हैं किस तरह,ये बात है कुछ इस तरह
वो डोर टूटी बारहा, हर बार हमने जोड़ दी !
उसने कहा कैसे हो तुम, बस मैंने लब खोले ही थे
और बात दुनिया की तरफ,जल्दी से उसने मोड़ दी !
वो चाहता है सब कहें, सरकार तो बे-ऐब हैं
जो देख पाए ऐब तो,हर आँख उसने फोड़ दी !
मंगलवार, 3 अप्रैल 2012
रात यूँ महकी.......
चाँद यूँ चमका सितारों ने रौशनी खो दी,
रात यूँ महकी हवा चुपचाप सो गयी !
दूर था फिर कैसे पास वो आ गया मेरे,
कुछ अलग सी थी मगर ये बात हो गयी !
चलते चलते राह में कुछ छोड़ आये थे,
फिर उसी बाबत ये मुलाकात हो गयी !
हम समझते थे कि तू आयेगा इस तरफ,
जाने कैसे उस तरफ मेरी राह मुड़ गयी !
दिल जला कुछ इस तरह रौशन हुई शम्मा,
हाँ...! उसी दिल से ये रौशन रात हो गयी !