सोमवार, 23 अप्रैल 2012

नकाब.......



न जाने कितने
हमारे अपने ही लोग,
हमारे बहुत बहुत अपने...
बड़े-बड़े झूठों को 
लिए हुए शान से
एक लम्बी सी 
मुस्कान के साथ
हमारे ईर्द-गिर्द ही 
मिल जाते हैं, 
जो हमारे सामने ही 
अपना-अपना झूठ... 
बड़ी सफाई से पेश कर
बहुत शान के साथ 
हमें और दूसरों को 
खुश कर देते हैं !
और हम सब 
उनके झूठ को 
समझते हुए भी 
चुपचाप स्वीकार 
कर लेते हैं,
जबकि सच्चाई क्या है....?
हमें भी पता होती है !
और सच्चाई 
कितनी चोट पहुंचाती है...
ये हम भी जानते हैं !
हम नहीं चाहते कि 
वो इस दौर से गुजरें...
किसी तरह की शर्मिंदगी 
दूसरों के बीच महसूस करें ..!
इस तरह सच्चाई पर  
झूठ की नकाब पड़ी ही रहती है !
और....
सच्चाई इस नकाब की 
ओट से झूठ को सच होता हुए 
चुपचाप देखती रहती है !
क्यूँ कि 
झूठ का अपना 
कोई अस्तित्व नहीं होता..
उसे सामने आने के लिए 
हमेशा सच का लिबास 
पहन कर ही खुद को 
दूसरों के सामने
पेश करना होता है.....!
मगर कुछ लोग 
इन बातों से 
खुद को बड़ा 
अनजान सा दिखाते हैं.... 
और हम भी उतने ही अनजान से, 
नादाँ से उनके इस झूठ को 
सच मान लेते हैं !
इस तरह 'वो सही हैं '
उनका भरम बना रह जाता है !
लेकिन इससे वो...
कुछ सीखते भी नहीं,
और इस तरह 
उनका झूठ सबके सामने 
सच तो हो जाता है ...
लेकिन  कब  तक ....?????

16 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
    सादर

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  2. बहुत बढ़िया पूनम जी....

    क्या संयोग है...आज हमने भी झूठ/सच पर ही कुछ लिखा है...
    वक्त मिले तो पढ़िएगा...
    रस्साकशी -सच और झूठ के बीच.
    http://allexpression.blogspot.com/2012/04/blog-post_23.html

    सस्नेह.

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  3. बहुत सुंदर.....और सार्थक रचना पूनम जी ......

    संयोग से आज हमने भी कुछ सच/झूठ पर लिखा है...वक्त मिले तो पढियेगा.
    http://allexpression.blogspot.com/2012/04/blog-post_23.html

    सस्नेह.
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. मुझे इतना पता है की सच कहने से ज्यादा सच सुनना कठिन होता है अगर कोई सच किसी को तबाह कर सकता है तो उस पर पर्दा ही पड़ा रहे तो अच्छा है.....सुन्दर शब्दों में ढली शानदार पोस्ट।

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  5. sahte raho,
    muskaraate raho,
    jab bardaasht naa ho
    sach kah do,
    par pahle himmat jutaa lo,
    khud kaa sach sunne
    ko taiyyaar ho jaao

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  6. लेकिन कब तक.....?

    यही सार है...|
    सच सच है .....झूठ झूठ |

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  7. सच पूछिए तो ऐसे झूट के पाँव नहीं होते ...वह लड़खड़ाकर बैठ जाता है ...कितनी ही बैसाखियाँ आप उसे दे दें

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  8. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति है आपकी.
    आप जो कह रहीं है वह 'नकाब' को बेनकाब कर रहा है.

    मेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभारी हूँ,

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