शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

अशआर...........





अशआर मेरे यूँ  तो ज़माने  के लिए हैं
कुछ शेर फ़कत तुझको सुनाने के लिए हैं !
              
               मेरी ज़रूरतों पे रहा मुझसे बदगुमान
               एहसास तेरे यूँ तो जमाने के लिए हैं !

लफ़्ज़ों के लिए तू न बरत पाया एहतियात
औरों का कद्रदां तू,  दुहाईयाँ   मेरे   लिए   हैं !
              
               दुश्मन को भी न दे ऐसी सजा मेरे हमसफ़र
               रिश्ते बहुत से यूँ तो निभाने   के   लिए  हैं !

गर इश्क है दिलों में खा लें सूखी रोटियां
पकवान यूँ तो ढेरों जमाने भर के लिए हैं !
             
              कायल हूँ तेरी फित्न:अंदाजी पे मेरे दोस्त !
              वर्ना बहुत से दोस्त  ज़माने   में   पड़े   हैं  ! 

गर दो दिलों में इश्क हो तो बनता है रिश्ता
वर्ना बहुत से जिस्म   बाजारों   में   पड़े  हैं !
              
               दौलत के बल पे कौन खरीद पाया है ख़ुशी 
               जो दिल  में हो  ख़ुशी खजाने  खुले  पड़े हैं  !



21 टिप्‍पणियां:

  1. kyaa baat hai,poore dil se likhaa hai aapne
    itnaa zaldee ek sundar rachnaa ke liye badhaayee

    keep it up...nirantar likhote raho

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  2. अशआर.....

    पता नहीं कैसे मेरे ब्लॉग से ये पोस्ट ही डिलीट हो गयी...बड़ी मुश्किल से recover कर पाई हूँ....क्यूँ कि मेरे पास कहीं rough लिखी हुई थी! आपमें से कुछ लोगों के सामने से शायद दुबारा गुज़रे...फिर भी आपका ध्यान चाहूंगी.....!शुक्रिया....!!

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  3. जां निसार अख्तर साहिब की ग़ज़ल से मतला लेकर आपने बहुत ख़ूबसूरती से रचना को तराशा है.
    बहुत खूब.

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    1. सही कहूँ तो जब मैंने लिखा था ये शेर तो मुझे ध्यान भी नहीं था कि ये "जाँ निसार अख्तर साहेब" का शेर है...बस "किसी की बात" पर ये शेर मेरे जेहन में कौंधा (शायद सुना हुआ था पहले से इसीलिए) और उसी के आधार पर आगे लिखती चली गयी...."अख्तर साहेब" से माफ़ी चाहूंगी...!!

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  4. उम्दा प्रस्तुति ………बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें.

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  5. बहुत ही बढ़िया ।

    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।


    सादर

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  6. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।
    बसंत पंचमी की शुभकामनाएं....

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  7. पूनम जी नमस्ते !
    कैसी हैं आप, अख्तर साहब की ये नज्म मेरी पसंदीदा रही है ....आपने इसमें अपना बेहतरीन पुट डाला है ...शुभकामनाएं - प्रदीप

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  8. पता नहीं भाई.....
    स्पैम में भी नहीं है...!
    plz. एक बार फिर से कमेन्ट दे दो...!

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  9. khubsurat prastuti...:)
    waise last line se sahmat nahi...

    kuchh khushiyan daulat si bhi mil jati hai:))

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    1. लेकिन मैं आपसे सहमत हूँ....
      ज्यादातर देखा गया है कि दौलत से हम सुविधाएँ खरीदते हैं जो थोड़ी देर की ख़ुशी देती हैं फिर ये सुविधाएं रोज़मर्रा की दिनचर्या में शामिल हो जाती हैं और हमारा ध्यान उन पर से हट जाता है.....थोड़े दिन के बाद हम फिर ऐसी ही दूसरी खुशी खरीदने की कोशिश करते हैं...और सिलसिला चलता रहता है....लेकिन हमारी खरीदी ख़ुशी टिक नहीं पाती...साथ ही कम सुविधा संपन्न लोगों को तथाकथित संपन्न लोगों से ज्यादा सुखी,ज्यादा खुश पाया गया है....!
      अपवाद हर जगह हैं... !
      (ये मेरे विचार हैं...आप सहमत भी हो सकते हैं और नहीं भी...)

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