गुरुवार, 28 जुलाई 2011

कोई तो है.......





दूर-दूर तक फैला
नीला विस्तृत आकाश...
किसी चित्रकार के
कैनवास की तरह
और उस पर..
यहाँ से वहां तक
कतारों में
फैला सफ़ेद बादल
रेगिस्तान की तरह
ऊंचा-नीचा,
न कोई पेड़-पौधे
न कोई पंछी, न इंसान
लेकिन फिर भी
कुछ दिखाई देता है
कुछ अनजाना सा अनबूझा सा...
पता नहीं क्या...???


5 टिप्‍पणियां:

  1. यह किस कवि की कल्पना का चमत्कार है।

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  2. बहुत खूबसूरत......बादलों में किसी की तलाश है.....वो जिसका अक्स हर किसी पर पड़ता है......वही मिलेगा हर जगह.....और कोई है ही नहीं उसके सिवा|

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  3. ये दृश्य सहज गोचर नहीं है पूनम जी ... ध्यान की सुरुआत होती है यहाँ से साधकों के लिए और जन्नत की शुरुआत होती है यहीं से प्रेमियों के लिए !

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