शनिवार, 14 मई 2011

१३ मई.......... पूज्य श्री श्रीरविशंकर जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष में... गुरुजी के श्री चरणों में समर्पित कुछ पुष्प...










गुरु..............


जीवन में जब गुरु मिले
पकड़ लीजिये हाथ !
सांस सांस में राम रहे
कभी न छोड़े हाथ !!

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गुरु मुझको ऐसा मिला
सोये जागे साथ !
जब कभी भी ठोकर लगे
मेरा पकड़ा हाथ !! 

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गुरु मुझको ऐसा मिला
मोहन सूरत जिसकी !
आँख मूँद दर्शन करून
मन में पाऊँ झाँकी !!

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सांवरिया मेरो गुरु
मन में लियो बसाय !
आँख मूँद दरसन करूँ
करूँ प्रेम चित लाय !!

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बलिहारी तेरी गुरु
मन में कियो निवास !
यह सरीर मंदिर भयो
सांस-सांस में आस !!

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गुरु मेरा खुशबू हुआ
तन-मन में बस जाय !
कहाँ गुरु कहाँ स्वयं हूँ
अंतर किया न जाय !!



 

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी गुरू समर्पित सुन्दर प्रस्तुति को सादर नमन.

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  2. गुरूजी को नमन ....भावमय पंक्तियाँ

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  3. जय गुरुदेव - क्या ये लिखा आपका है ? या समर्पित हैं भाव ?

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  4. नूतन...

    जयगुरुदेव..!!

    जी हाँ !!
    ये सारी पंक्तियाँ मेरी ही लिखी हुई हैं !
    लेकिन लिखवाने वाला कोई और ही है...
    ये मेरा सौभाग्य है कि मैं माध्यम बनी.!!

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  5. निःसंदेह आपकी श्रद्धा अद्वितीय है, तस्वीर भी बोलती हुई

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  6. गुरु की महिमा तो हम सभी समझते हैं........ये आपके सच्चे उदगार लगे...सुन्दर|

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  7. आ.पुनम जी
    सादर अभिवादन !

    आपकी लेखनी से आज कुछ और अधिक परिचित हुआ हूं -
    गुरु मेरा ख़ुशबू हुआ , तन मन में बस जाय ।
    कहां गुरू कहां स्वयं हूं , अंतर किया न जाय ॥


    वाह वाऽऽह ! कुछ छंद पढ़ कर ईर्ष्या होने लगी है कि ये मेरी कलम से क्यों नहीं लिखे गए … :)
    गुरू के प्रति इतने श्रेष्ठ भाव ! नमन है !!

    मैंने भी गुरू चरणों में कुछ निवेदन किया है -
    एक बूंद मोती बने , इक सागर बन जाय !
    जितनी करुणा गुरू करे , शिष्य - मान अधिकाय !!


    मेरे ब्लॉग पर यह पोस्ट समय मिलने पर देखें और सुनें कभी
    गोविंद से गुरु है बड़ा


    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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